Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
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सौमित्रि : सं०० (सं०) । सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण । मा० २.१२२ सौरज : सं० (सं० शौर्य) । शूरता, वीरता । मा० ६.८०.५ सोरभ : सं०० (सं.)। (१) आम्रवृक्ष । 'सौरभ पल्लव मदनु बिलोक ।' मा०
१.८७.५ (२) सुगन्ध । सुरभि सौरभ धूप दीप बरमालिका ।' विन० ४८.२ स्तव : सं०पु० (सं०) । स्तोत्र, स्तुति , प्रार्थना-पद । मा० ३.४.२३ स्थ : वि० (सं.)। स्थित । मा० १ श्लोक २ स्थिति : सं०स्त्री० (सं.) । अवस्था, उपस्थिति । विद्यमानता । मा० १ श्लोक ५ स्पृहा : सं०स्त्री० (सं०) । इच्छा, लालसा । मा० ५ श्लोक २ । स्फुरत् : वकृ० (सं०) । देदीप्यमान, लहराता-ती। मा० ७.१०८.६ स्पंदन : सं०० (सं.)। रथ । मा० ६.४३.८ स्यंदनु : स्यंदन+कए । 'स्यंदन मंजि सारथी मारा।' मा० ६.८३.५ स्थानी : सयानी । चतुरा । कवि० ७.१३३ स्याम : (१) वि० (सं० श्याम) । आकाशवर्ण । 'स्याम सारस जुग मनों ससि स्रवत
सुधा सिंगारु ।' कृ० १४ (२) संपुं० । श्री कृष्ण । स्यामतन : श्याम शरीर वाला । रा०प्र० ४.४.२ स्यामता : सं०स्त्री० (सं० श्यामता) नीलिमा । मा० ६.१३.६ स्याममई : वि० (सं० श्याममय) । श्यामरूप, कृष्ण से तदाकार, श्री कृष्ण से एकी
भूत । 'उड़ि न लगे हरि संग सहज तजि, द न गए सखि स्याममई ।' कृ० २४ स्यामल : वि० (सं० श्यामल) । श्यामवर्ण । मा० ७.५.८ स्यामसुदर : श्री कृष्ण (श्याम होते हुए सुन्दर)। कृ० ३० स्यामा : (१) स्याम । श्यामवर्ण । 'नील कंज तन सदर स्यामा।' मा० ६.५६.६
(२) सं०स्त्री० (सं० श्यामा) । एक श्यामवर्ण की शुभसूचक चिड़िया । 'स्याम बाम सुतर पर देखी।' मा० १.३०३.७ (३) वयः सन्धि में स्थित सुन्दरी किशोरी; तप्त काञ्चन के ये रूप वाली (जो ग्रीष्म में शीतल और शीत में उष्ण स्पर्श वाली हो); षोडशी । तिन्ह के संग नारि एक स्यामा।' मा०
३.२२.८ स्यों : अव्यय । सहित । तेहि उर क्यों समान बिराट बपु स्यों महि सरित सिंधु
गिरि भारे ।' कृ० ५७ स्योकाई : सेवकाई । हनु० १२ स्रक, ग : सं०स्त्री० (सं० सक, स्रग्) । पुष्पमाला, माला । 'स्रक चंदन बनितादिक
भोगा।' मा० २.२१५.८ 'स्रग मह सर्प बिपुल भयदायक ।' विन० १२२.३
मा० १.३५५.२; ३५६.३ स्रम : श्रम । पसीना । 'हम सों कहत बिरह स्रम जैहै गगन कूप खनि खोरे ।' कृ०
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