Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
समान : श्रमकन । स्वेद बिन्दु । गी० ७.१८.५ स्रमित : श्रमित । विन० १७०.६ 'स्रव, स्रवइ : आ०ए० (सं० स्रवति>प्रा० सवइ>अ० स्रवइ)। चूता या
बहता है, बहाता है, टपकाता है 'जनु स्रव सैल गेरु के धारा ।' मा० ३.१८.१ स्त्रवत : वक००। (१) टपकता-ते, बहता-ते । 'स्रवत नयन जल जात ।' मा०
७.१ (२) टपकाता-ते । 'स्रवत प्रेमरस पयद सुहाए ।' मा० २.५२.४ लवन : श्रवन । कान । 'स्रवन सुजस सुनि लीजै ।' कृ० ४६ । सवननि : स्रवन+संब० । कानों (में, से) । 'लागि स्रवननि करत मेरु की बतकही।'
गी०७.६.३ सहि, ही : (१) आ०प्रब । बहाते-ती हैं । 'मन भावतो धेनु पय स्रवहीं।' मा०
७.२३.५ (२) गिरते हैं, च्युत होते हैं। स्रवहिं आयुध हाथ ते ।' मा०
६.७६ छं. सवै : सवइ । (१) चुलाती है, टपकाती है, प्रवाहित करती है। कोमल बानी संत
की सर्व अमृतमय आइ । वैरा० १६ (२) चाहे चुलाए, बहाये । 'बिधु विष
चवै सवै हिमु आगी।' मा० २.१६६.२ स्रष्टा : वि० सं०पू० (सं.)। सृष्टिकर्ता, विधाता । विन० ५३.७ खाद्ध : श्राद्ध । लाधु : स्राद्ध+कए । 'स्राद्ध कियो गीध को।' कवि० ७.१५ स्वति : श्रुति । वेद । 'कहि न सकत स्रुति सेस उमाबरा।' क० २१ खवा : सं०० (सं० स्रुव) । यज्ञ का उपकरण (पात्र) विशेष जिससे घी आदि ___ अग्नि में डाला जाता है । 'चाप उवा सर आहुति जानू ।' मा० १.२८३.२ लेनी : श्रेनी । गी० ७.१५.२ स्रोत : सं०पु० (सं० स्रोतस्) । स्रोता, प्रवाह । विन० १८.४ स्व : वि०+सं० (सं.)। (१) आत्मा । (२) आत्मीय, अपना । 'चलहिं स्व धर्म
निरत श्रुति नीती।' मा० ७.२१.२ (३) स्वमति-बिलास ।' मा० ७.१५.६
(४) धन-जैसे, सर्वस्व । स्व: : अव्यय (सं.) । स्वर्ग, अन्तरिक्ष । मा० ३ श्लोक १ स्वक : वि० (सं०) । स्वकीय, अपना । मा० ३.४.१६ स्वकर : अपना हाथ । मा० १.२१३.२ स्वछंदचारी : वि० (सं.)। (१) मनमाना आचरण करने वाला । (२) निरपेक्ष
होकर सर्वत्र गति रखने वाला सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र =परमेश्वर । विन० ५६.४. स्वच्छता : सं०स्त्री० (सं०) । शुद्धता, निर्मलता । मा० १.३६.५
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