Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
मा० १.३५.१ (३) छीनकर ग्रहण करता है । 'हरइ सिष्य धन सोक न हरई।'
मा० ७.६६.७ हरउ : आ०-प्रार्थना-प्रए० (सं० हरतु>प्रा. हरउ) । हर ले, दूर करे । 'हरउ
भगत मन के कुटिलाई ।' मा० २.१०.८ हरको : भूकृ०स्त्री० । हट की, रोकी । 'कलिकाल की कुचाल काहू तो न हरकी।
कवि० ७.१७० हरख : हरष । विन० १४३.४ हरखाने : हरषाने । गी० १.८६.६ हरगिरि : शिवजी का पर्वत=कैलास । मा० ६.२५.१ हरण : वि०पू० । हरने वाला। मा०६ श्लो०१; विन० १० हरत : वकृ००। (१) निरस्त करता-करते । 'हरत सकल कलि कलुष गलानी।'
मा० १.४३.३ (२) छीन लेता-लेते। 'हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिसे नैन ।' मा० १.३२६ (३) संहार करता। पालत सृजत हरत ।' मा०
५.२१.५ हरता : वि० (सं० हत-हर्ता)। हरण कर्ता, संहारक । कवि० ७.१४६ हरतार : हरता। 'करतार भरतार हरतार ।' हनु० ३० हरति : वकृ०स्त्री०। (१) निरस्त करती। (२) छीन लेती। 'हरति बाल रबि
दामिनि जोती।' मा० १.३२७.३ (३) संहार करती। 'जो सजति जगु
पालति हरति ।' मा० २.१२६ छं० हरद : सं०स्त्री० (सं० हरिद्रा) । हलदी । मा० १.२६६.८ हरन, ना : हरण । (१) सं० । अपहरण। 'सीता हरन ।' मा० ३.३१ पुनि
माया सीता कर हरना।' मा० ७.६६.६ (२) भक० अव्यय । हरने, निरस्त करने । 'सो अवतरेउ हरन महि भारा।' मा० ६.६.८ (३) वि००।
हरणशील, हरने वाला। 'तारन तरन हरन सब दूषन ।' मा० ७.३५.६ हरनहार : वि.पु. । हरने वाला, निरस्त करने वाला । 'हरनहार तुलसी की
पीर को।' हनु० १० (२) संहारकर्ता। हरनि, नी : वि०स्त्री० । हरणशीला, निरस्त करने वाली। ‘मंगल करनि कलि
मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ।' मा० १.१० छं. 'स्वमति बिलास त्रास
दुख हरनी।' मा० ७.१५.६ हरनिहार : हरनहार । संहारकर्ता। 'हर से हरनिहार जपें जाके नाम ।' गी०
५.२५.२ हरनू : हरन+कए । एकमात्र हरने वाला, नाशक । 'कहत सुनत दुख दूषन
हरनू ।' मा० २.२२३.१
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