Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

View full book text
Previous | Next

Page 587
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1132 तुलसो शब्द-कोश हनी : भूक०स्त्री० । (१) मारी। 'मुठिका एक महाकपि हनी ।' मा० ५.४.४ (२) तडित की (बजायी) । 'दुदुभि हनी ।' मा० १.३२७ छं० ४ हनु : सं०स्त्री० (सं०) । ठुड्ढी, चिबुक । गी० ७.१७.१३ हनुमंत, ता : सं०पु० (सं० हनुमत् >प्रा० हमुमंत)। हनुमान जी। मा० ४.३; ५.७.४ हनुमत : हनुमंत (सं० हनुमत्) । 'हनुमत जन्म सुफल करि माना।' मा० ४.२३.१२ हनुमदादि : (सं०) । हनुमान् इत्यादि (वानरगण) । मा० ७.८.२ हनुमान, ना : हनुमंत । मा० ५.२; १.१७.१० हनुमानू : हनुमान+कए० । मा० १.७.७ हनू : हनुमान (प्रा० हणुव) । मा० ५.४४ हनुमंत : हनुमंत । मा० ६.५०.२ हनूमान : हनुमान । मा० ५.१ हने : भूकृ०० ब० । (१) मारे, मार डाले । 'प्रबल खल भुजबल हने ।' मा० ७.१३ छं० १ (२) ताडित किये (बजाये) । 'हरषि हने गहगहे निसाना।' मा० १.२६६.१ हनेउ : भूक००कए । आहत किया, हत किया । 'दामिनि हनेउ मनहुं तर तालू ।' मा० २.२६.६ हनेसि : आo-भूकृ.पु+प्रए। उसने मारा । 'हनेसि माझ उर गदा ।' मा० ६ ६४.८ हने : हनइ । मा० ६.६४ छं. हन्यो : हनेउ । 'तब मारुत सुत मुठिका हन्यो।' मा० ६.६५.७ हबि : सं०पु+स्त्री० (सं० हविष्- नपुं०) । (१) हव्यः हवन सामग्री जो यज्ञ की आग में डाली जाती है । कवि० ५.७ (२) हविष्यान्न, यज्ञापित नैवेद्य (का शेष खीर आदि) । यह हबि बाँटि देहु नृप जाई ।' मा० १.१८६.८ हबूब : सं०० (अरबी) । धूल उड़ाने वाला वातचक्र, बवडंर, अंधड़ । 'बानी झूठी साची कोटि उठत हबूब है। कवि० ७.१०८ हम : (१) सर्वनाम-उब० (सं. अस्म>प्रा० अम्ह)। मा० १.६२.३ (२) अहंकार, आपा, अपने की अनुभूति । 'हम लखि, लखहि हमार, लखि हम हमार के बीच ।' दो०१६ हमरि, रो : हमारी । हमरि बेर कस भएह कृपिनतर ।' विन० ७.२ हमरिऔ : हमारी भी। हमरिऔ..'बनि गई है।' गी० २.३४.४ हमरें : हमारे यहाँ । 'हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया।' मा० ७.५.४ हमरे : हमारे । मा० १.१८१.५ हमरेउ : हमारा भी, हमारे भी। 'हमरेउ तोर सहाई।' मा० १.१८४ छं. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612