Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसो शब्द-कोश
हनी : भूक०स्त्री० । (१) मारी। 'मुठिका एक महाकपि हनी ।' मा० ५.४.४
(२) तडित की (बजायी) । 'दुदुभि हनी ।' मा० १.३२७ छं० ४ हनु : सं०स्त्री० (सं०) । ठुड्ढी, चिबुक । गी० ७.१७.१३ हनुमंत, ता : सं०पु० (सं० हनुमत् >प्रा० हमुमंत)। हनुमान जी। मा० ४.३;
५.७.४ हनुमत : हनुमंत (सं० हनुमत्) । 'हनुमत जन्म सुफल करि माना।' मा० ४.२३.१२ हनुमदादि : (सं०) । हनुमान् इत्यादि (वानरगण) । मा० ७.८.२ हनुमान, ना : हनुमंत । मा० ५.२; १.१७.१० हनुमानू : हनुमान+कए० । मा० १.७.७ हनू : हनुमान (प्रा० हणुव) । मा० ५.४४ हनुमंत : हनुमंत । मा० ६.५०.२ हनूमान : हनुमान । मा० ५.१ हने : भूकृ०० ब० । (१) मारे, मार डाले । 'प्रबल खल भुजबल हने ।' मा०
७.१३ छं० १ (२) ताडित किये (बजाये) । 'हरषि हने गहगहे निसाना।'
मा० १.२६६.१ हनेउ : भूक००कए । आहत किया, हत किया । 'दामिनि हनेउ मनहुं तर तालू ।'
मा० २.२६.६ हनेसि : आo-भूकृ.पु+प्रए। उसने मारा । 'हनेसि माझ उर गदा ।' मा०
६ ६४.८ हने : हनइ । मा० ६.६४ छं. हन्यो : हनेउ । 'तब मारुत सुत मुठिका हन्यो।' मा० ६.६५.७ हबि : सं०पु+स्त्री० (सं० हविष्- नपुं०) । (१) हव्यः हवन सामग्री जो
यज्ञ की आग में डाली जाती है । कवि० ५.७ (२) हविष्यान्न, यज्ञापित नैवेद्य
(का शेष खीर आदि) । यह हबि बाँटि देहु नृप जाई ।' मा० १.१८६.८ हबूब : सं०० (अरबी) । धूल उड़ाने वाला वातचक्र, बवडंर, अंधड़ । 'बानी झूठी
साची कोटि उठत हबूब है। कवि० ७.१०८ हम : (१) सर्वनाम-उब० (सं. अस्म>प्रा० अम्ह)। मा० १.६२.३
(२) अहंकार, आपा, अपने की अनुभूति । 'हम लखि, लखहि हमार, लखि हम
हमार के बीच ।' दो०१६ हमरि, रो : हमारी । हमरि बेर कस भएह कृपिनतर ।' विन० ७.२ हमरिऔ : हमारी भी। हमरिऔ..'बनि गई है।' गी० २.३४.४ हमरें : हमारे यहाँ । 'हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया।' मा० ७.५.४ हमरे : हमारे । मा० १.१८१.५ हमरेउ : हमारा भी, हमारे भी। 'हमरेउ तोर सहाई।' मा० १.१८४ छं.
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