Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
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स्वामी : वि.पुं० (सं०) । स्वत्वधारी, प्रभु । मा० ७.६३ स्वयंभू : सं०० (सं० स्वायंभुव)। स्वयंभू ब्रह्मा के पुत्र (मनुविशेष)। मा०
१.१४२.१ स्वारथ : सं०० (सं० स्वार्थ)। अपना प्रयोजन (स्व+अर्थ)। परहित रहित
उद्देश्य या विषय । 'स्वारथरत परिवार बिरोधी।' मा० ७.४०.४ (२) परमार्थ
विरोध विषय या प्रयोजन (अर्थकाम) । स्वारथी : वि.पु. (सं० स्वाथिन्) । अपना ही प्रयोजन (अर्थ काम) सिद्ध करने
वाला (परमार्थ तथा परोपकार से रहित)। मा० ६.११०.२ स्वारथ : स्वारथ+कए । मा० २.२५४.५ स्वास, सा : सं०० (सं० श्वास) । मुख तथा नासिका से आने जाने वाला प्राण
वायु । मा० ५.४६ क 'रटै नाम निसि दिन प्रति स्वासा।' वैरा० ४० स्वासु : स्वास+कए । एक श्वास । कवि० ५.२२ स्वाहा : अव्यय (सं.)। हवन करते समय कहा जाने वाला वैदिक मन्त्र (पुराणों __ में स्वाहा को अग्नि पत्री कहा गया है)। कवि० ५.७ स्वेद : सं०पु० (सं०) । पसीना । मा० २.११५ ।। स्व : सोइ । वही । 'सजान सुसील सिरोमनि स्व ।' कवि० ७.३४ स्वहैं : सोइहैं । आ०भ०प्रब० । सोएँगे। 'निलज प्रान सुनि सुनि सुख स्वहैं ।' गी०
६.१७.३
हकरावा : भूकृ.पु । बुलवाया। मेघनाद कहुं पुनि हैकरावा ।' मा० १.१८२.१ हैकारा : सं०० (सं० हक्का-कार>प्रा० हक्कार)। बुलावा, आमन्त्रण । 'गुर __ बसिष्ट कह गयउ हकारा।' मा० १.१६३.७ हकारि : पूकृ० । बुलवा (कर) । 'जाचक लिये हकारि ।' मा० १.२९५ हकारी : भूकृ०स्त्री०ब ० । बुलवायी, बुलायीं । 'पुनि धीरज धरि कुॲरि हकारी ।'
मा० १.३३७.६ हकारी : (१) भूकृ०स्त्री० । बुला ली। 'राज करत एहिं मृत्यु हकारी । मा०
६.४२.५ (२) हकारि। बुलवाकर । 'दिए दान बहु बिप्र हकारी।' मा० २.८.४
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