Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
स्वर्ग : सं०पु० (सं.)। (१) सद्गति (नरक का विलोम)। 'नरक स्वर्ग अपवर्ग
निसेनी ।' मा० ७.१२१.१० (२) दुःख स्पर्श रहित अखंड सुख । 'तृन सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा ।' मा० ७.४६.७ (३) सात ऊर्व लोक । भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तप: और सत्यम् । 'सात स्वर्ग अपवर्ग सुख ।' मा० ५.४
(४) देवलोक । स्वर्गउ : स्वर्ग भी । 'स्वर्ग उ स्वल्प अंत दुखदाई।' मा० ७.४४.१ (यहाँ देवलोक से
तात्पर्य है-पुण्य क्षीण होने पर स्वर्ग से पतन होता है)। स्वनं : सं०पू० (सं० स्वर्ण) । सुवर्ण, काञ्चन । हनु० २ स्वल्प : वि० (सं०) । अत्यन्त अल्प । मा० ७.२८ स्वल्पउ : स्वल्प भी; लेशमात्र भी। 'यहि स्वल्पउ नहिं ब्यापिहि सोई ।' मा०.
७.१०६.७ स्वांग : सं००। (१) अभिनय, नाटक (वेष परिवर्तन द्वारा स्वरूपावच्छादन) ।
'सारदूल को स्वांग करि कूकर की करतूति ।' दो० ४१२ (२) प्रहसन, हास्य
विनोद की रूपसज्जा । 'चढ़े खरनि बिदूषक स्वांग साजि ।' गी० ७.२२.८ । स्वागत : सं०० (सं०) । शुभागमन, आदरणीय व्यक्ति के आने में मार्ग की सुख
सुविधा । स्वागत पूछि पीत पट प्रभु बैठन कहँ दीन्ह ।' मा० ७.३२ स्वाति, ती : सं०स्त्री० (सं०)। एक नक्षत्र जिसमें बरसने वाले जल से चातक
तृप्त होता है, सीपी में मोतो, केले में कपूर, बांस में वंशलोचन और सर्प में
विष उत्पन्न होते हैं- ऐसी कवि प्रसिद्धि है । मा० २.५२; १.२६३ ६ स्वाद : (१) सं०० (सं०)। रस । 'सीतल अमल स्वाद सुखकारी ।' मा०
७.२३.८ (२) रसग्रहण । 'स्वाद तोष सम सुगति सुधा के ।' मा० १.२०.७.
(३) स्वादु । स्वादयुक्त । 'राधे स्वाद सुनाज।' दो० १६७ स्वादित : भूकृ०वि० (सं०) । स्वाद पाया हुआ, रसतृप्त । 'बस जो ससि उछंग
सुधा स्वादित कुरंग।' विन० १६७.१ स्वादु, दू : (१) स्वाद+कए । 'किमि कबि कहै मूक जिमि स्वादू ।' मा०
२.२४५.६ (२) वि०० (सं० स्वादु)। सरस, सुस्वादयुक्त । 'मधु सुचि
सदर स्वादु सुधा सी।' मा० २.२५०.१ स्वान, ना : सं०० (सं० श्वन् = श्वान) । कुत्ता । मा० ७.१०६.१५, ६.१०२.७. स्वानु : स्वान+कए । 'बलवान है स्वान गली अपनी ।' कवि० ६.१३ । स्वन्तः : अव्यय (सं०) । अपना अन्तःकरण, अन्तरात्मा । 'स्वान्तः सुखाय ।' मा०.
१ श्लो० ७ ‘स्वान्तस्तप.शान्तये ।' मा० ७.१३० उपसंहार श्लोक । स्वामि : वि.पु. (सं० स्वामिन ) स्वामी । पालक आदि । मा० १.१५.४ स्वामिनि : वि०स्त्री० (सं० स्वामिनी) ! पालिका, प्रभु । मा० २.२१.६ स्वामिभक्त : वि० (सं०) । स्वामी के प्रति अनन्य भावना वाला । मा० ६.२४.३
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