Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
सेव्य : वि० (सं० ) । आराध्य, उपास्य । सेवा का आलम्बन । मा० ७ श्लोक १ सेव्यमान: वकृ०पु० (सं०) कवा ० | सेवा किये जाते हुए । मा० ७ श्लोक १ सेष, षा: सं०पु० (सं० शेष) । (१) ( सर्पराज, शेषनाग | मा० १.४.८
(२) शेषावतार लक्ष्मण । नाना विधि प्रहार कर सेषा ।' मा० ६.५४.५ (३) बचा हुआ अंश ।
सेषु : सेष + कए० । शेषनाग । 'कहि सकइ न सेषु ।' मा० २.२२५
सेस : सेष । मा० १.१२
सेसू : सेस + कए० । 'सकल धरम धरनी धर सेसू ।' मा० २.३०५.२
सैं : सन | से, प्रति । 'कहेहु दंडवत प्रभु सैं ।' मा० ७.१६
I
संतति : वकृ० स्त्री० (सं० समेतयन्ती ) । समटती, बटोरती । 'लेति भरि भरि अंक संतति पैंत जनु दुहुं करनि ।' गी० १.२८.४
से: सय । सो 'संवत सोरह से एकतीसा । मा० १.३४.४
1
सेन : (१) सेन (सं० सैन्य ) । सेना । 'अनुज सँभारेहु सँन ।' मा० ६.६७ (२) सं० [स्त्री० (सं० संज्ञा > प्रा० सन्ना ) । संकेत, इङ्गित, आंखों से संकेत, इशारा । 'बरजति संन नैन के कोए । कृ० ११
सैनु : सैन + कए० । सेना । 'हारि निसाचर सैनु पचा ।' कवि० ६.१५
सैबल : सेवार (सं० शेवल ) । गी० ७.१७.६
सैल : सं०पु० (सं० शैल > प्रा० सइल ) । शिला समूह = पर्वत । मा० १.१
सैलकुमारी : पार्वती । मा० १.७८.२
सैलजहि : शैलजा = पार्वती को । 'जाइ बिबाहहु संलजहि ।' मा० १.७६
सैनंदिन : पार्वती । गी० १.५.६
संलराज : पर्वतराज हिमालय । मा० १.६६.६
सैला : सैल । 'भागों तुरत तजौं यह सैला ।' मा० ४.१.५
सैल : सैल + कए | पर्वत । मा० १.२६२.८
संलोपरि : पर्वत के ऊपर । मा० ७.५६.१०
संसव : सं०पु० (सं० शैशव ) । आठ वर्ष तक की बाल्यावस्था । विन० १३६.६ सों : अव्यय (सं० सह> अ० सहुं) । से ( परसर्ग ) । ' सो माया प्रभु सो भय भाखे । मा० १.२००.४
सोंधी : वि०स्त्री० (सं० सुगन्धि प्रा० सुअंधी ) । अच्छी- भली । ' जो चितवनि सोंधी लगे, चितइए सबेरे ।' विन० २७३.३
सोंधे : वि०पु० (सं० सुगन्धित > प्रा० सुअंधिय ) । सुगन्धयुक्त । 'खात खुनसात सोंधे दूध की मलाई है ।' कवि० ७.७४
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