Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शम्द-कोश
1103
सुहाई : (१) सहाइ । शोभायुक्त सुरुचिपूर्ण-सुखकर होती है । 'पारस परस कुधात
सहाई ।' मा० १.३.९ (२) भक०स्त्री० । सुख करी, शोभाकरी, रुचिकरी।
'फटिक सिला अति सुभ्र सहाई ।' मा० ४.१३.६ सुहाउँगो : आ०भ०० उए० । रुचिकर-सुखकर लगूगा। 'ज्यों साहिबहि सुहाउँगो।'
__ गी० ५.३०.१ सुहाएँ : सुहाए' से; सुन्दर-सुख कर से। 'सेवा करेहु सनेह सुहाएं।' मा०
२.१७५.८ सुहाए : भूक०पु०ब० । सुख कर, शोभन, उत्तम । 'सुनि बसिष्ट के बचन सुहाए ।'
मा० ७.१०.६ सुहागु : सोहागु । मा० २.२१.४ (पाठान्तर) सुहाड़ : सुदृढ़ हड्डी । 'रन रावन राढ़ सुहाड़ गढ़े।' कवि० ६.६ सुहाथ : (१) उत्तम हाथ, दाहना हाथ । (२) स्वहस्त = अपना हाथ । 'सुहाथ ___ माथे राखि राम रजाइ।' गी० ७.२७.५ सुहाये : सुहाए । 'सहज सुहाए नैन ।' गी० १.३५.१ सुहायो : भूक००कए० । सुखकर, सुरुचिपूर्ण, शोभन । गी० ६.४.४ सुहावन : वि०० (सं० सुखापन>प्रा० सुहावण) । सुखदायी। 'बहइ सुहावन
त्रिबिध समीरा।' मा० ७.३.१० सुहावनि, नी : सुहावन+स्त्री० । सुखदायिनी । मा० ७.४.५; ५.३५ छं० २ सुहावनु : सुहावन+कए । एकमात्र सुखप्रद, शुभ । 'सगुन सुहावनु जानु ।'
रा०प्र०६.१.३ सुहावने : सुहावन (रूपान्तर) । कवि० ७.१४१ सुहावनो : सुहावन+कए । कवि० ५.१ सुहावा : वि०पू० (सं० सुखापक>प्रा० सुहावअ) सुखद, सुन्दर । मा० ७.५५.१ सुहित : (१) (दे० हित) श्रेष्ठ हितू । (२) वि.पु. (सं०) । तृप्त (जिसे अन्य
अपेक्षा न हो) । विन० ७७.२ सुहृद : सं०+वि० (सं० सुहृद्) । (१) शुभ हृदययुक्त । 'पुनि कह राउ सुहृद
जियँ जानी।' मा० २.२७.१ (२) मित्र । मा० ५.४८.४ सुहेत : (दे० हेत) उत्तम साधन । कवि० ७.६३ सुहो : सुहव । रागविशेष । 'गावै सुहो गोंड़ मलार ।' गी० ७.१८.५ सूंड : सं०स्त्री० (सं० शुण्ड, शुण्डा)। हाथी की नाक । दो० ३४५ सूकर : सं०० (सं० सूकर=शूकर) । वराह, सुअर । मा० ६.११०.७ अवतार___वर्णन में वराहावतार से तात्पर्य रहता है । सूकरखेत : सं०० (सं० शूकरक्षेत्र) । तीर्थविशेष । मा० १.३० क सूकरी : सूकर+स्त्री० । विन० २५८.३
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