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तुलसी शब्द-कोश
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राति, ती : सं०स्त्री० (सं० रात्रि, रात्री>प्रा. रत्ति, रत्ती)। निशा। मा०
१.१०८.७, २.११.७७ रातिचर : निशाचर । 'मारे रन रातिचर ।' कवि० ६.५८ रातिचर राज : राक्षसराज, रावण । 'सेना सराहन जोगु रातिचर-राज की।' कवि०
राते : राता+०। (१) रक्तवर्ण, लाल । 'नयन रिस राते ।' मा० १.२६८.६
(२) रंगे हुए+अनुरक्त । 'जो 4 जानकी नाथ के रंग न राते ।' कवि० ७.४४ रातो : राता+कए । अनुरक्त हुआ (होता-क्रियाति पु०ए०) । 'जो मन प्रीति
प्रतीति सो राम नामहि रातो।' विन० १५१.६ रात्यो : रातो। अनुक्त हुआ। 'मोह मद मात्यो रात्यो कुमति कुनारि सों।' कवि०
७.८२ राधो : भूकृ.पु.कए० (सं० राध:>प्रा० रद्धो) । आराधित किया। 'जो 4 राधो
नहीं पति पारबती को।' कवि० ७.१५६ रानि : रानी । मा० २.१३.७७ रानिन, न्ह : रानी+संब० । रानियों। 'रानिन्ह कर दारुन दुख दावा।' मा०
१.२६०.६ रानी : रानी+ब० । रानियां । 'मंदिर महं सब राजहिं रानी।' मा० १.१६०.७ रानी : सं०स्त्री० (सं० राज्ञी>प्रा० राणी)। राज पत्नी । मा० १.४० राम : (१) सं०+वि.पु. (सं0-रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः) । योगियों
तथा भक्तों का आनन्दमय विश्रामस्थल । (२) परमात्मा। 'राम सच्चिदानंद दिनेसा।' मा० १.११६.५ (३) कोसल्यापुत्र (अवतार रूप) राम। मा० २.१३.२ (४) 'राम' शब्द । 'मुखन ते धोखेउ निकसत राम ।' वैरा० ३७ (५) परशुराम । 'कहा राम सन राम ।' मा० १.२८२ (६) कृष्ण के अग्रज
(बल)। कृ० २६ (७) यक्षर 'राम' मन्त्र । रामघाट : वह गङ्गा तट जहाँ शृङ्गवेर पुर में रह कर राम ने स्नान किया था।
मा० २.१६७.४ रामचंद : रामचंद्र । मा० २.१.६ रामचंदु : रामचंद+कए । 'रामचंदु पति सो बैदेही।' मा० २.६१.७ रामचंद्र : चन्द्रमा के समान आह्लादकारी भगवान् राम । मा० २.१६७.६ रामचरित : राम की सम्पूर्ण जीवनचर्या । मा० १.११ रामचरितमानस : काव्य का नाम । (१) शिव के मन में रक्षित राम का चरित ।
(२) मानस सरोवर के समान हृदय का आह्लादकारी रामचरित । (३) राम चरित रूपी मानस सरोवर। :रचि महेस निज मानस राखा । ..."तातें
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