________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुलसी शब्द-कोश
647
प्रहलादू : प्रह्लाद+कए । 'भगत सिरोमनि भे प्रह्लादू।' मा० १.२६.४ प्रहस्त : रावण का सेनापति राक्षस । मा० ६.८ प्रहार : सं०० (सं.)। मार । मा० ४.८.३ प्रहारा : प्रहार । मा० ५.४१.६ प्रहलाद : सं०पु० (सं०) । विष्णुभक्त दैत्यराज=हिरण्यकशिपु का पुत्र । विन०
६६.२ प्रहलादपति : नृसिंह भगवान् । मा० ६.८१ छं. प्राकृत : सं०+वि. (सं०)। (१) सामान्य, पामर । 'प्राकृत नारि अंग अनुरागीं।'
मा० १.२४७.२ (२) प्रकृति से उत्पन्न ; मायाधीन । 'कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना ।' मा० १.११.७ (३) (आध्यात्मिक का विलोम) मायिक, भौतिक, प्रकृति में सीमित । 'प्राकृत प्रीति कहत बड़ि खोरी।' मा० २.३१८.१ (४) प्रकृति (माया) को स्वेच्छा से ग्रहण कर अवतीर्ण । विन० ५३.३ (५) भाषाविशेष जिसका अध्ययन संस्कृत को प्रकृति (मल) मान कर किया
जाता है । 'जे प्राकृत कबि परम सयाने ।' मा० १.१४.५ प्राची : सं०स्त्री० (सं०) । पूर्व दिशा । मा० १.१६.४ प्रात : अव्यय (सं० प्रातर्) । सबेरा, सबेरे, प्रभात । मा० १.४४.८ प्रातकाल : (सं० प्रातःकाल)। मा० १.२०५.७ प्रातकृत : (सं० प्रातःकृत्य) । शौच-स्नान-सन्ध्या आदि कर्म । मा० २.१०५.२ प्रातक्रिया : (सं० प्रातःक्रिया) =प्रातकृत । मा० १.३३०.४ प्राता : प्रात । 'अवसि दूतु में पठइब प्राता।' मा० २.३१.७ प्रातु : प्रात+कए० । प्रथम प्रभात । 'होत प्रातु मुनि बेष धरि जौं न राम बन
जाहिं ।' मा० २.३३ प्रान : सं०पु० (सं० प्राण) । शरीर स्थित वायु विशेष जो जीवन धारण का कारण
है। इसके पांच भेद हैं- (१) हृदय में प्राणवायु; (२) गुद में अपान; (३) नाभि में समान (पाचक वायु); (४) कण्ठ में उदान और (५) सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रक्तादि-संचारकारी व्यान वायु । अतएव इसका बहुवचन प्रयोग पाया जाता है । 'करहिं न प्रान पयान अभागे।' मा० २.७६.६ जीवनार्थक
प्रयोग भी चलते हैं - "बिधि हरिहरमय बेद प्रान सो।' मा० १.१६.२ प्राननाथ : प्राणों का स्वामी-प्रिय पति । मा० २.६४ प्राननाथ : प्राननाथ+कए । प्राणों का अनन्य स्वामी। 'प्राननाथु रघुनाथ
गोसाई।' मा० २.१६६.८ प्राननि : प्रान+संब० । प्राणों (को)। 'पातकी पांवर प्राननि पोसों।' कवि०
७.१३७ प्रानपति : प्राननाथ । मा० १.७४.१
For Private and Personal Use Only