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तुलसी शब्द-कोश
बीरबहूटी : बीरबहूटी + ब० । बीरबहूटियाँ । 'फैलि चलीं बर बीरबहूटीं ।' कवि०
६.५१
बीरबहूटी : सं० स्त्री० । एक मखमली लाल रंग का सुन्दर कीड़ा जो वर्षा में प्रचुरता से पैदा होता है । गी० ७.१६.२
arrant : वीरता का व्रत रखने वाला, दृढप्रतिज्ञ वीर । मा० १.२७४.८ बीरभद्र : बीरभद्र (सं० वीरभद्र ) कए० । शिव-गण- विशेष । मा० १.६५.१ बीररस : काव्य का वह रस जिसका स्थायी भाव 'उत्साह' होता है । उसके चार भेद हैं- युद्धोत्साह से युद्धवीर, दयोत्साह से दयावीर, दानोत्साह से दानवीर और धर्मोत्साह से धर्मवीर । 'गगनोपरि हरि गुन गन गाए । रुचिर बीर रस प्रभु मन भाए ।' मा० ६.७१.११
बोरा : (१) बीर | शूर । मा० ४.१.७ (२) सं०पु० (सं० वीटक > प्रा० लगे हुए पान का जोड़ा । 'रूपसलोनि तँबोलिनि बीरा हाथहि हो ।' बोरासन: सं०पु० (सं० वीरासन ) । एक घुटने को भूमि पर टिका कर मुद्रा । 'जागन लगे बैठि बीरासन ।' मा० २९०.२
बीरु, रू : बीर + कए । अद्वितीय वीर । मा० १.२८२.१ सिखइ धनुष बिधा बर
वीउअ ) । रा०न० ६
बैठने की
बीरू ।' मा० २.४१.३
बोस, सा : (१) संख्या (सं० विशति > प्रा० वीसा ) । मा० ६.२१; ५.११.४ (२) बीस बिस्वा, पूर्णतया । 'मोको बीसहू के ईस अनुकूल आजु भो ।' गी०
२.३३.१
बीसबाहु : रावण । कवि० ५.१३
बीसौं : बीसी में । 'बीसीं बिस्वनाथ की बिसाद बड़ो बारानसीं ।' कवि० ७.१७० बीसी : सं० [स्त्री० (सं० विशतिका, विशा ) । ६० संवतों में से २०-२० वर्ष क्रमशः ब्रह्मविशति, विष्णुर्विशति और रुद्रविशति के ज्योतिष शास्त्र में माने गये हैं । रुद्रबीस का समय कवितावली है ।
बीहा : बीस | 'सचिहूँ मैं लबार भुज-बीहा ।' मा० ६.३४.७
बंद : सं०पु० (सं० बिन्दु) । मा० ६.८७.६
बुदा : बुद | टिकली, बिन्दी (जो मस्तक पर लगायी जाती है ) । मुनि मन हरत मंजु मसि बुदा ।' गी० १.३१.४
बुदिया : सं० स्त्री० (सं० बिन्दुका) । एक प्रकार का खाद्य पदार्थ जो बेसन आदि का बुन्द के आकार में बनता है । 'बुंदिया सी लंक पधिलाइ पाग पागिहै । " कवि ०
० ५.१४
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'बुझ, बुझइ : आ०प्र० (सं० व्युदिध्यते > प्रा० बुज्झइ बुतना, आग का शान्त होना) बुझता है, शान्त होता ती है । बुत सकता-ती है। 'बुझे कि काम अगिनि तुलसी कहुं बिषय भोग बहु घी ते ।' विन० १६६.४