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तुलसी शब्द-कोश
बलन : बल + संब० । बलों शक्तियों + सेनाओं (के) । 'जीते लोकनाथ नाथ बलनि भरम ।' विन० २४६.२
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बलबीर, रा : बल में वीर, शारीरिक शक्ति में शूरवीर । ' सचिव सयान, बंधु बलबीरा ।' मा० १. १५४.२
बलमीक : सं०पुं (सं० वल्मीक ) । बामी = चींटी, दीमक आदि द्वारा बनाया हुआ मिट्टी का ऊँचा स्तूप जिसमें साँप का निवास माना जाता है । 'मरइ न उरग अनेक जतन बलमीक बिबिध बिधि मारे ।' विन० ११५.४
बलमूल: अत्यन्त शक्तिशाली । कवि० ५.७
बलय : सं०पु० (सं० वलय ) । चूड़ी, कंगन । 'मंजीर नूपुर बलय धुनि ।' गी०
७. १८.५
बलराम : कृष्ण के अग्रज के दो नाम हैं- बल तथा राम । हिन्दी में परशुराम और रामचन्द्र से अलग करने के लिए 'बलराम' कहा जाता है ।
बलवंत, ता: वि० ० (सं० बलवत् > प्रा० बलवंत ) । बलशाली । मा० ३.१६.१० बलवान, ना: बलवंत मा० । १.१२२; १.५६.६
बलवानु: बलवान + कए० । रा०प्र० ५.६.६
बलसालि, ली : वि०पु० (सं० बलशालिन) । बलवान् । मा० ५.२१.६
बलसींव, वा : (दे० सींवा ) । बल की सीमा, अत्यन्त बलशाली । 'कृपासिंधु बलसींव |' मा० ४.५
बलसोम : बलसीव । कवि० ६.४५
बलसील, ला : वि० (सं० बलशील) । बल ही जिसका शील हो = प्रकृत्या बल-शाली । मा० ६.२३.५
बलाइ : सं० स्त्री० (अरबी - बला) । संकट, विपत्ति | 'बानरु बड़ी बलाइ घने घर घालि है ।' कवि० ५.१० (२) अपने पर दूसरे की विपत्ति लेने के अर्थ में मुहावरा है । 'बलाइ लेउँ सील की ।' कवि० ६.५२
बलाक : सं० (सं० ) । एक प्रकार का बगुला । मा० १.३८.५
बलाहक : सं०पु० (सं० वलाहक) । मेघ । मा० ६.८७.४
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बलि : सं०पु० (सं०) । (१) दैत्यवंश का प्रसिद्ध राजा । 'सिबि दधीचि बलि ।' मा० २.३०.७ (२) देवोपहार, नैवेद्य, भेंट । 'बैनतेय बलि जिमि यह कागू मा० १.२६७.१ (३) यज्ञ में पशु बध । 'मैं एहि परसु काटि बलि दीन्हे ।' मा० १.२८३.४ (४) न्योछावर । 'भइ बड़ि बार जाइ बलि मेआ ।' मा० २५३.२ (५) अव्यय ( प्रा० वले) । भला बिचार तो करो कि । ' है निर्गुन सारी बारीक बलि ।' कृ० ४१
बलिछरन : वि०पुं० । दैत्यराज बलि को छलने वाले । विन० २१८.३
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