________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
650
तुलसी शब्द-कोश
(२) वात्सल्य सूचक स्तन्यस्राव-जिसे भक्ति रस में सत्त्विक भाव माना गया
है । 'स्रवत प्रेमरस पयद सुहाए।' मा० २.५२.४ प्रेमसुख : प्रेमरस । भक्तिरूप सुख । 'परमानंद प्रेमसुख फूले।' मा० १.१६६.५ प्रेमहि : प्रेम को । 'प्रेमहि न प्रबोधू ।' मा० २.२६३.८ प्रेमा : सं०० (सं०) दे० प्रेम । (१) प्रेमालम्बन की तृप्ति हेतु की हुई अनन्य
भावना । स्वसुख-निरपेक्ष प्रेम । 'काय बचन मन पति पद प्रेमा।' मा० ३.५.१० (२) प्रेम । 'संत चरन पंकज अति प्रेमा ।' मा० ३.१६.६ (३) प्रेमा भक्ति जिसमें चित्तवृत्ति । आराध्य से एकाकार हो जाती है और प्रेम से पृथक् कोई प्रयोजन नहीं रहता-प्रेम ही एकमात्र साध्य बन जाता है । 'सब कर
फल रघुपति पद प्रेमा ।' मा० ७.६५.६ प्रेमाकल : प्रेम में विभोर । मा० ५.३२ प्रेमातुर : प्रेमजनित संभ्रत (हड़बड़ी) से युक्त । मा० ७.६.४ प्रेमु : प्रेम+कए० । अद्वैत अनन्य प्रेम । 'प्रेम प्रमोदु न थोर ।' मा० १.३२१ /प्रेर प्रेरइ : (सं० प्रेरयति>प्रा. पेरइ>अ० प्रेरइ) आ०प्रए० । प्रवृत्त करता
है, चलाता है, उकसाता है, प्रेरित करता है । रिद्धि सिद्धि प्रेरइ बहु भाई ।'
मा० ७.११८.७ प्रेरक : वि० (सं०) । (१) कार्यों में प्रवृत्त करने वाला। 'माया प्रेरक सीव ।'
मा० ३.१५ (२) सबके हृदय में रहकर प्रेरणा देने वाला=अन्तर्यामी । 'उर
प्रेरक रघुबंस बिभूषन ।' मा० ७.११३.१ प्रेरकानंत : (प्रेरक+अनन्त) अन्तर्यामी तथा असीम । विन ० ५३.३ प्रेरत : वकृ.पु ! चलाते । 'रूप निहारत पलक न प्रेरत ।' गी० २.१४.२ प्रेरा : भूकृ०० । प्रेरित किया, उकसाया। 'जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा।' मा०
३.२१.५ प्रेरि : पूकृ० । प्रेरित कर । 'गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन ।' मा० १.७७ प्रेरित : प्रेरा (सं०) । 'प्रेरित मोह समीर ।' मा० ७.८१ ख प्रेरें : प्रेरित होने पर, प्रेरणा से । 'तस कहिहउँ उर हरि के प्रेरें।' मा० १.३१.३ प्रेरे : भूकृ०पू०ब० । प्रेरित किये (हुए) । 'आवत बालितनय के प्रेरे।' मा०
६.३२.१० प्रेरेउ : भूकृ०पु०कए । प्रवृत्त किया। 'राम जबहिं प्रेरेउ निज माया। मा०
___ ३.४३.२
प्रेरयो : प्रेरेउ । विन० १३६.५ प्रोक्त : भूक० (सं०) । कहा हुआ, प्रवचन किया हुआ । मा० ७.१०८ छं० ६
For Private and Personal Use Only