Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 14
________________ ज्ञान से कहीं ज्यादा रस मशीनों के काम में था । मगर नौकरी के इस जीवन में रम जाने पर भी अन्दर से मन में कुछ और ही विचार आते; कुछ और ही खोज करने की अकुलाहट मन में हमेशा बनी रहती । एक बार अपने एक मित्र के साथ सुरेन्द्र सिनेमा देखने पहुँच गये । फिल्म का नाम था 'संसार' । परिवार के लोगों के बीच भेद-भाव, लोभ-मोह, ईर्ष्या-द्वेष आदि के चित्रण देख सुरेन्द्र के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। दोस्तों में सिनेमा की बातें होतीं । बातों ही बातों में एक दोस्त उन्हें 'प्रभात स्टुडियो' तक ले गया । सुरेन्द्र काम के लिए चुन भी लिये गये, मगर वहाँ जब कहा गया कि पहले स्टुडियो में झाड़ू देनी होगी, कुर्सियाँ उठानी होंगी, तो सुरेन्द्र उलटे पैर लौट आये और उस ओर फिर कभी उलट कर नहीं देखा । स्टुडियो के चक्कर में एम्यूनीशन फैक्टरी की नौकरी भी जाती रही थी । उन्हीं दिनों एक मित्र के घर चाय पर बिस्किट खाते समय उन पर अंकित 'साठे बिस्किट ' शब्द पढ़कर सुरेन्द्र साठे बिस्किट कंपनी में पहुँच गये | सुरेन्द्र काम के लिए पहुँचे और काम न मिले, यह संभव ही नहीं था । सुरेन्द्र वहीं काम करने लगे । पूना नगर के इस निवास में सुरेन्द्र ने बहुत से देशभक्तों के भाषण सुने । गांधीजी के सिद्धान्तों और विचारों का मनन किया। जुलूसों और दूसरे कार्यक्रमों में भाग लिया । देशभक्ति का व्रत लिया। बचपन में आश्रम - जीवन से जो संस्कार मन पर दृढ़ हुए थे उन्हें अब बल मिला । अपना जीवन साधु-संतों, विद्वान् -महात्माओं जैसा हो ऐसे विचार सुरेन्द्र के मन में बार-बार आने लगे । बिस्किट फैक्टरी में कुछ दिन काम करने के बाद सुरेन्द्र को उसमें अरुचि हो गयी और वे पूना छोड़कर घर आ गये । सुरेन्द्र का सारा समय अब मनन- चिन्तन में बीतने लगा । राह की खोज जारी थी । कर्त्तव्य का निश्चय करना था। तभी सन् १९४२ का "भारत छोड़ो" आन्दोलन आरंभ हुआ । देशभक्ति की तरंगें जिनके हृदय में हिलौरें लेती हों वे चुप कैसे बैठ सकते थे ? सुरेन्द्र ने साथी युवकों के साथ मिलकर एक योजना बनायी । एक बाँस, कुछ रस्सी और तिरंगा झण्डा इकट्ठा करना था । इतना काम हो जाने के बाद एक रात गाँव की चौपाल के सामने एक पेड़ पर तिरंगा फहरा कर युवकों की यह टोली 'भारत माता की जय' के नारे लगाकर घर चली गयी । मुनिश्री विद्यानन्द- विशेषांक Jain Education International For Personal & Private Use Only १५ www.jainelibrary.org

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