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द्वितीय अध्याय ]
द्वितीय अध्याय
शुद्धचिद्रूपके ध्यान में उत्साह प्रदान
मृतपिंडेन विना घटो न न पटस्तंतून विना जायते धातुर्नैव विना दलं न शकटः काष्ठं विना कुत्रचित् । सत्स्वन्येष्वपि साधनेषु च यथा धान्यं न बीजं विना शुद्धात्मस्मरणं विना किल मुनेर्मोक्षस्तथा नैव च ॥ १ ॥
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अर्थ :- जिस प्रकार अन्य सामान्य कारणोंके रहने पर भी कहीं भी असाधारण कारण मिट्टी के पिंडके बिना घट नहीं बन सकता, तंतुओंके बिना पट, खंदक ( जिस जगह गेरू आदि उत्पन्न होते हैं ) के बिना गेरू आदि धातु, काष्ठके बिना गाड़ी और बीज के बिना धान्य नहीं हो सकता, उसीप्रकार जो मुनि मोक्षके अभिलाषी हैं - मोक्ष स्थान प्राप्त करना चाहते हैं वे भी बिना शुद्धचिद्रूपके स्मरणके उसे नहीं पा सकते ।
भावार्थ:- मूल में साधारण कारणोंकी मौजूदगी होने पर भी यदि असाधारण कारण न हों तो कदापि कार्य नहीं हो सकता । घटकी उत्पत्ति में असाधारण कारण मृत्पिंड, पटकी उत्पत्ति में तंतु, धातुकी उत्पत्ति में खंदक, गाड़ीकी उत्पत्ति में काष्ठ और धान्यकी उत्पत्ति में असाधारण कारण बीज है । तो जिस प्रकार मृत्पिड आदिके बिना घट आदि नहीं बन सकते, उसी प्रकार मोक्षकी प्राप्ति में असाधारण कारण शुद्ध आत्माका स्मरण है; इसलिये अन्य हजारों सामान्य कारणोंके जुटाने पर भी बिना शुद्धचिद्रूपके स्मरणके मोक्ष प्राप्ति भी कदापि नहीं हो सकती, इसलिये मोक्ष प्राप्ति के अभिलाषियोंको चाहिये कि वे अवश्य शुद्धात्माका स्मरण करें ॥ १ ॥
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