Book Title: Tattvagyan Tarangini
Author(s): Gyanbhushan Maharaj, Gajadharlal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 182
________________ 2 2 2 2 2 2 2 2 3102012-22021 2 2 2 2 2 2 LLLLL सिद्धभगवान में जैसी सर्वज्ञता, जैसी प्रभुता, जैसा जैसा 2 अतीन्द्रिय आनन्द तथा जैसा आत्मवीर्य है वैसी ही सर्वज्ञता, प्रभुता, आनन्द और वीर्यकी शक्ति तेरे आत्मामें भी भरी ही है । भाई ! एक बार हर्षित तो हो कि अहो ! मेरा आत्मा ऐसा परमात्म स्वरूप है, ज्ञानानन्दकी शक्तिसे भरा है । मेरे आत्माकी शक्तिका घात नहीं हुआ है । अरेरे । मैं हीन हो गया, विकारी हो गया... अब मेरा क्या होगा ! ऐसा डर मत, उलझन में न पड़. हताश न हो... एक स्वभावकी महिमा लाकर अपनी शक्तिको स्फुरित कर । - पूज्य कानजीस्वामी 222222222222222222222LLLLLLL Jain Education International 02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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