Book Title: Tattvagyan Tarangini
Author(s): Gyanbhushan Maharaj, Gajadharlal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 181
________________ १७४ [ तत्त्वज्ञान तरंगिणी ग्रन्थसंख्यात्र विज्ञेया लेखकः पाठकैः किल । पत्रिंशदधिका पंचशती श्रोतृजनैरपि ॥ २४ ॥ अर्थः- इस ग्रन्थको सव श्लोक संख्या पांच सौ छत्तीस है, ऐसा लेखक, पाठक और श्रोताओंको समझ लेना चाहिये अर्थात् यह ग्रन्थ पांच सौ छत्तीस प्रलोकोंमें समाप्त हुआ है ।। २४ ।। इति मुमुक्षुभट्टारक श्री ज्ञानभूपणविरचितायां तत्वज्ञानतरंगिण्यां शुद्धचिद्रपप्राप्तिक्रम प्रतिपादकोऽष्टादशोऽध्यायः ॥ १८ ।। इस प्रकार मोक्षाभिलापी भट्टारक ज्ञानभूषण द्वारा विरचित तत्त्वज्ञान तरंगिणीमें शुद्धचिद्रपकी प्राप्तिके क्रमका प्रतिपादन करनेवाला अठारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ ।। १८ ॥ ॥ इति श्री तत्त्वज्ञानतरंगिणी संपूर्णम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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