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सातवाँ अध्याय ।
[ ७३ शुद्धचिद्रूपसंप्राति नयाधीनेति पश्यतां ।
नयादिरहितं शुद्धचिद्रूपं तदनंतरं ॥२३॥ अर्थ :-शुद्धचिद्रूपकी प्राप्ति नयोंके आधीन है । शुद्ध चिद्रूपके प्राप्त हुये पश्चात् नयोंके अवलंबनकी कोई आवश्यकता नहीं ।
भावार्थः-जब तक शुद्धचिद्रूपकी प्राप्ति नहीं होती तब तक नयोंसे काम है; परन्तु शुद्धविद्रूपकी प्राप्तिके बाद कोई नय कार्यकारी नहीं । उस समय नयोंकी अपेक्षाके बिना ही शुद्धचिद्रूप प्रकाशमान रहता है ।। २३ ।।
इति मुमुक्षुभट्टारकज्ञानभूषणविरचितायां तत्त्वज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचिद्रपस्मरणाय नयावलंबन प्रतिपादक सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥
इस प्रकार मोक्षाभिलाषी भट्टारकज्ञानभूषण द्वारा निर्मित तत्त्वज्ञान तरंगिणीमें शुद्धचिद्रपके स्मरण करनेके लिये नयोंके आश्रयको वर्णन करनेवाला सातवाँ अध्याय
समाप्त हुआ ।। ७ ॥
त. १०
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