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[ तत्त्वज्ञान तरंगिणी उत्तम गुरुओंका उपदेश है, समस्त सिद्धांतोंका रहस्य और समस्त कर्तव्योंमें मुख्य कर्तव्य है ।
भावार्थ:- चिद्रूपको बिना विशुद्ध किये किसी प्रकारका कल्याण नहीं हो सकता, इसलिये यही उत्तम गुरुओंका उपदेश समस्त सिद्धान्तोंका रहस्य और कर्तव्योंमें मुख्य कर्तव्य है कि चिद्रूपमें विशुद्धि प्राप्त करो ।। २३ ।।
इति मुमुक्षुभट्टारक श्री ज्ञानभूपण विरचितायां तत्रज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचि ध्यै विशुद्धधानयनविधि प्रतिपादकस्त्रयोदशोऽध्यायः ॥ २३ ॥
इस प्रकार मोक्षाभिलाषी भट्टारक ज्ञानभूषण द्वारा विरचित तत्वज्ञान तरंगिणी में शुद्ध चिपकी प्राप्तिके लिये विशुद्धिकी प्राप्तिका उपाय प्रतिपादन करनेवाला तेरहवाँ अध्याय समाप्त हुआ || १३ ॥
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