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| तत्त्वज्ञान तरंगिणी क्षणभरके लिये भी शुद्धचिद्रूपके स्वरूपसे विचलित नहीं होते-प्रतिक्षण वे शुद्धचिद्रूपका ही चितवन करते रहते हैं ।। २१-२२ ।।
इति मुमुक्षुभट्टारक श्री ज्ञानभूषण विरचितायां तत्त्वज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचिद्रूपं स्मरन्नन्यकार्य
करोतीति प्रतिपादकश्चतुर्दशोऽध्यायः ।। १४ ॥ इस प्रकार मोक्षाभिलापी भट्टारक ज्ञानभूपण द्वारा विरचित तत्त्वज्ञान तरंगिणी में "शुद्धचिद्रूपका ध्यान करता हुआ भी यह जीव अन्य कार्य करता रहता है" इस बातको बतलानेवाला चौदहवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥ १४ ॥
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