Book Title: Tattvagyan Tarangini
Author(s): Gyanbhushan Maharaj, Gajadharlal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 173
________________ १६६ ] [ तत्त्वज्ञान तरंगिणी करते हैं, विवेकी -हित-अहित के जानकार हैं, शुद्धचिद्रूपमें रत हैं और विद्वान हैं उन्हें ही यह निराकुलतामय सुख प्राप्त होता है, उनसे अन्य किसी भी मनुष्यको नहीं ।। २० ।। इति मुमुक्षुभट्टारक श्री ज्ञानभूपण विरचितायां तत्रज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचिद्रूपये सुखस्वरूपप्रतिपादकः सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥ इस प्रकार मोक्षाभिलाषी भट्टारक ज्ञानभूषण द्वारा विरचित तत्त्वज्ञान तरंगिणी में शुद्धचिद्रपमें प्रेम बढे इस कारण वास्तविक सुखका प्रतिपादन करनेवाला सत्रहवाँ अध्याय समाप्त हुआ || १७ ॥ Jain Education International an aru For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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