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चौथा अध्याय शुद्धचिद्रूपकी प्राप्तिमें सुगमताका वर्णन न क्लेशो न धनव्ययो न गमनं देशांतरे प्रार्थना केपांचिन्न बलक्षयो न न भयं पीडा परस्यापि न । सावधं न न रोग जन्मपतनं नैवान्यसेवा न हि चिद्रपस्मरणे फलं बहु कथं तन्नाद्रियंने बुधाः ॥१॥ ___ अर्थ:-इस परमपावन चिद्रूपके स्मरण करने में न किसी प्रकारका क्लेश उठाना पड़ता है, न धनका व्यय, देशांतर में गमन और दूसरेसे प्रार्थना करनी पड़ती है। किसी प्रकारकी शक्तिका क्षय, भय, दूसरेको पीड़ा, पाप, रोग, जन्म-मरण और दूसरेकी सेवाका दुःख भी नहीं भोगना पड़ता जबकि अनेक उत्तमोत्तम फलोंकी प्राति भी होती है । अतः इस शुद्धचिद्रूपके स्मरण करने में हे विद्वानो ! तुम क्यों उत्साह और आदर नहीं करते ? यह नहीं जान पड़ता ।
भावार्थ-संसार में बहुतसे पदार्थ ऐसे हैं जिनकी प्राप्तिमें अनेक क्लेश भोगने पड़ते हैं, धन व्यय, दूसरे देश में गमन, दूसरेसे प्रार्थना, शक्तिका क्षय, भय, दूसरोंको पीड़ा, नाना प्रकारके पाप, रोग, जन्म, मरण और अन्य सेवा आदि निकृष्ट कार्योका भी सामना करना पड़ता है परन्तु शुद्धचि द्रुपके स्मरणमें उपर्युक्त किसी बातका दुःख भोगना नहीं पड़ता इसलिये आत्मिक सुखके अभिलाषी विद्वानोंको चाहिये कि वे अचित्यसुख प्रदान करनेवाले इस शुद्धचिद्रूपका अवश्य स्मरण करें ।। १ ।।
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