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रा व्यर्थ खर्च न करें, कार्यकी सफलता के लियेखर्चमें संकोच भी न करें।
और ग्राहक महानुभावों को भेजने में कृतकार्य हुए हैं। ___ इनके लेखन-संपादन-संशोधन-प्रूफ-संशोधन आदि का सारा कार्य श्री दूगड़ जी ने स्वयं किया है । इस कार्य को झड़प से पूरा करने के लिए कई कई रातों सोये तक नहीं । न खाने की चिन्ता न सोने की परवाह । विश्राम की तो बात ही क्या ! __हम इन्हें कई बार कहते कि पूज्यवर्य-यह आप क्या कर कहे हैं ? माप के स्वास्थ्य, अवस्था और आयु को देखकर हम शिशघर रह जाते हैं कि आप इतनी कठोर साधना के पीछे अपने स्वास्थ्य से हाथ न धो बैठे। __ आपके पास एक ही उत्तर पाते कि भाई मेरे सिर पर बड़ी भारी जिम्मेवारी है । जिन-जिन महानुभावों ने ग्राहक बनाने बनने में इस कार्य में मुझे सहयोग दिया है। देरी होने से पता नहीं वे अपने मन में क्या-क्या सोचते होंगे ? इसलिए मैं कृतसंकल्प हूं कि शीघ्रातिशीघ्र पुस्तकें प्रकाशित होकर ग्राहक महानुभावों को पहुंचा दी जावें। मेरे स्वास्थ्य की चिन्ता न करें शासनदेव मेरे इस शासन सेवा के कार्य में उत्साह बढ़ाने में अवश्य सहायक हैं। मेरे स्वास्थ्य की उन्हें चिन्ता है इस लिए मुझे तो मेरी लगन से काम करने दो।
विलम्ब के लिए क्षमा याचना _हम आशा करते हैं कि ग्राहक महानुभाव पुस्तकों के प्रकाशन होने में पाशा तीत विलम्ब होने के कारण को समझ गए होंगे । हमने भी इनके प्रकाशन में कम से कम समय में तैयार कराने में पूरी सावधानी बरती है। कुदरत के सामने किसी का ज़ोर नहीं। इसके लिये हम भी विवश हैं । फिर भी विलम्ब के लिये हम ग्राहक महानुभावों से क्षमा प्रार्थी हैं।
सहयोगियों की उदारता के लिए आभार प्रदर्शन इन तीनों विभागों तथा शकुन विज्ञान के ग्राहक बनाने तथा जैन साहित्य के प्रचार के लिए जिन-जिन महानुभावों ने श्री दूगड़ जी का उदार वृत्ति से सहयोग दिया है उन्होंने उदारता, स्नेह तथा ज्ञान के प्रति सच्ची भक्ति का परिचय दिया है । आशा करते हैं कि इसी प्रकार आगे के लिए भी आपका
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