Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 12
________________ मुख सामने सबकी प्रशंसा करें। उपकारी के उपकार को न भूलें। - - कारण मार्कीट में कागज का एक दम अभाव हो गया और दाम भी एक दम दुगने ड्योढ़े हो गये, फिर भी रुपया लेकर कई दिनों तक मार्कीट में चक्र लगाने पर भी शीघ्र कागज उपलब्ध न हो सका । बहुत कठिनाई से बड़े मंहगे भाव में कागज मिला और प्रेस में देकर पुस्तकों के छपने की व्यवस्था की जा सकी। ___ स्वर विज्ञान के विषय में--- तीन-चार वर्ष पहले स्वरविज्ञान तथा स्वप्न विज्ञान की प्रेस कापियां भाई पुखराज जी, व भाई सरदारमल' जी को श्री दुग्गड़ जी ने मद्रास उनके मंगवाने पर भेजी थी। उन्होंने स्वामी ऋषभदास जी को अवलोकनार्थ दीं। स्वामी जी ने उन्हें आद्योपांत पढ़ा और इसे प्रकाशित कराने की अनुमति दे दी। तत्पश्चात उसी वर्ष आचार्य विजयविक्रम सूरि आदि जैन मुनिराजों का मद्रास में चतुर्वास होने से स्वरोदय तथा स्वप्न विज्ञान की प्रेस कापियां देखने के लिए उन्हें दे दी गईं । उन्होंने भी इन्हें पढ़ा और छपाने के लिए अनुमति दे दी। ___ इसी बीच में स्वरोदय विज्ञान के "कालज्ञान" भाग वाली कॉपी खो गई, दोनों भाइयों के बहुत तलाश करने पर भी न मिल सकी। "कालज्ञान", वाली कापी के सिवाय-बाकी की प्रेस कॉपियां भाई श्री पुखराज जी ने वापिस लौटा भेजीं। अब स्वरोदय विज्ञान के खोये हुए भाग "कालज्ञान' का प्रभाव कैसे पूरा किया जावे । यह भी एक प्रश्न चिह्न बन गया। __श्री दूगड़ जी ने इसे फिर नये सिरे से लिखकर प्रेस कापी तैयार की। इसी चक्कर में छः महीने व्यतीत हो गए। सितम्बर १९७३ कों कागज मिलने पर तथा दोबारा प्रेस कापियां तैयार होने पर फिर इन्हें दूसरे प्रेस में छपने के लिये दिया गया। - इन पुस्तकों के प्रकाशन में श्री दूगड़ जी ने इतनी लगन तथा झड़प से काम को निपटाया है कि तीन मास के अल्प समय में १-स्वप्न विज्ञान, २-प्रश्न पृच्छा विज्ञान तथा ३-स्वरोदय विज्ञान छपकर तैयार हो गए हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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