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१२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून १०
गया है । खेत्त-वत्थु विहिपतिमाणां करे । जैन आगमों में वत्थु का अर्थ घर, मकान या निर्माण - कला है। अर्द्धमागधी शब्दकोष में घर या घर आदि बनाने का ज्ञान वास्तु बताया गया है जिसे आज कला (आर्किटेक्ट) कहा जाता है । " डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने अपने ग्रन्थ 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' में इसे 'गृह-निर्माण-विद्या' भी कहा है। इसे वास्तु पाठक भी कहा है। यह स्थापत्य कला में आती है । " हेमचन्द्र ने अपने अभिधानचिन्तामणि नामक ग्रन्थ में कहा है- 'गेहू भूर्वास्तु' अर्थात् गृह निवास ही वास्तु है ।
इस तरह जैन साहित्य में वास्तु का अर्थ गृह या भूमि, या वास स्थल किया गया है या गृहनिर्माण की विद्या को वास्तु-विद्या या वास्तु कला कहा जा सकता है।
उत्पत्ति - वास्तु की उत्पत्ति के सम्बन्ध में वास्तु-शिल्प के प्राचीन अपराजित- पृच्छा नामक बृहत् ग्रन्थ में लिखा है कि- अंधकासुर का विनाश करने के लिए महादेव जी को युद्ध करना पड़ा। इसके परिश्रम से महादेव जी के कपाल से पसीने की एक बूंद भूमि के ऊपर स्थापित अग्निकुंड में गिरी, इससे एक महाकाय भूत उत्पन्न हुआ। उसे देवों ने औंधा पटक दिया और उसके ऊपर पैंतालीस देव चढ़ बैठे और रहने लगे। इन देवों द्वारा महाकाय भूत के ऊपर बने निवास स्थान को वास्तु पुरुष माना गया। इसलिए गृहादि के प्रारम्भ में और समाप्ति में इन देवों का पूजन प्रचलित हुआ, जो वास्तु पूजन के नाम से प्रसिद्ध है।" वास्तु- कला का जैन साहित्य में विस्तृत वर्णन है। इसके अन्तर्गत मन्दिर, मूर्ति, वापिका, राजमहल, चैत्य, स्तम्भ, मंडप, जाली, गवाक्ष आदि भी आते हैं।
वास्तु-कला के प्रमुख ग्रन्थ- वास्तु-शिल्प जानने के लिए अपराजितपृच्छा, समरांगणसूत्रधार, प्रासादमंडन, शिल्परनम्, मयमतम्, परिणाममंजरी द्रष्टव्य जैन ग्रन्थ हैं। वास्तु-शिल्प के लिए वत्थुसारपयरण, जिनसंहिता, प्रश्नव्याकरण, ज्ञाताधर्मकथा, प्रतिष्ठासार, जोणिपाहुड, आदिपुराण, यशस्तिलकचम्पू, रयणचूडरायचरियं, रयणसेहरीणीवकहा, प्रतिमा - विज्ञान आदि प्रमुख ग्रन्थ भी हैं। इनके अतिरिक्त मृच्छकटिकम्, पउमचरियं, जयोदय महाकाव्य आदि ग्रन्थ भी हैं जो वास्तुकला पर प्रकाश डालते हैं। अन्य कई जैन साधुसाध्वियों ने भी वास्तु - कला परं ग्रन्थ लिखे हैं ।
वास्तु-शिल्प का क्षेत्र - वास्तुशिल्प के उपयोग क्षेत्र हैं- देवालय, मूर्ति स्तम्भ, समोसरण, गुम्बज, चैत्य, वापिका, गन्धकुटी, ध्वजनिर्माण, प्रासाद आदि ।