________________
सामाजिक क्रान्ति और जैन धर्म : ६९
भाग्य-विधाता माना और अपने सांसारिक एवं आध्यात्मिक जीवन में मनुष्य को उसके प्रत्येक कर्म के लिए उत्तरदायी बताया। वास्तव में जैन धर्म एवं जैन संघ ने जनसाधारण की बड़ी सावधानी से सेवा की५ जैन धर्म ने समाज के उत्पीडित वर्गों को अत्यधिक प्रभावित किया। वैश्यों को भी जो आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली थे परन्तु जिन्हें तदनुरूप सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं थी और शूद्रों को जो स्पष्ट रूप से दलित और सताए हुए थे, को इस वर्ण-निरपेक्ष सम्प्रदाय में सम्मिलित होकर अपने वर्ण से उबरने का अवसर दिया। इस प्रकार जैन मत वर्ण व्यवस्था का विरोधी था और इस दृष्टि से इसे वर्ण-निरपेक्ष आन्दोलन कहा जा सकता है।६ व्यापार-वाणिज्य एवं नगर-संस्कृति के प्रसार में भूमिका
जैन धर्म ने अपने सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ढाँचे से व्यापार-वाणिज्य एवं नगर-संस्कृति के विकास एवं प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जैन धर्म व्यावहारिक शुचिता तथा मितव्ययिता के व्यवसायोचित गुणों को प्रोत्साहित करता था। 'जीवों की हिंसा कम से कम हो इसे ध्यान में रखकर जैन धर्मावलम्बियों ने मुख्यतः व्यापार को अपनी आजीविका का साधन बनाया।८ इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कला, कलात्मक शिल्पों को प्रोत्साहन मिला तथा नवीन व्यावसायिक तत्त्वों का उदय हुआ। यह धर्म अल्प संचय तथा मितव्ययिता को प्रोत्साहन देता है। पश्चिमी तट पर समुद्री व्यापार होता था, जहाँ जैनियों ने साहूकारी का धंधा शुरू किया जिससे दूसरे लोग पण्य-वस्तुओं के साथ समुद्र-पार यात्रा पर जाने लगे। जैनियों की वाणिज्यवृत्ति से न केवल नगर-संस्कृति का विकास हुआ! अपितु राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय व्यापार और वाणिज्य को गतिशीलता मिली। कर्म की श्रेष्ठता की समाज में स्थापना
जैन धर्म का कर्म सिद्धान्त मनुष्य की उत्पत्ति में ईश्वरीय हस्तक्षेप को खारिज करते हुए, उसे स्वयं के भाग्य का विधाता मानता है। अपने सांसारिक एवं आध्यात्मिक जीवन में मनुष्य अपने प्रत्येक कर्म के लिए उत्तरदायी है।२० अतः मनुष्य स्वयं अपने कर्मों की कृति है। महावीर स्वामी ने कहा 'कर्म से ही मनुष्य ब्राह्मण या शूद्र होता है। उस समय भारतीय समाज का बहुसंख्यक वर्ग पद-दलित था और युग-युग से ईश्वर के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा था। जैन धर्म ने उन्हें नवीन मार्ग दिखाया और उन्हें बताया कि उनकी दलित स्थिति के लिए ईश्वर जिम्मेदार नहीं है अपितु वे स्वयं जिम्मेदार हैं, उन्हें अच्छे कर्म के पथ पर अग्रसर