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११० : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१० पार्श्वचन्द्रगच्छ की नौ साध्वियों का पार्श्वनाथ विद्यापीठ
में अध्ययनार्थ आगमन दिनांक १५.६.२०१० को पार्श्वचन्द्रगच्छ की नौ साध्वियाँ परमपूज्य पुनीतकलाश्रीजी, परमपूज्य भव्यानन्दश्रीजी, परमपूज्य संयमरसाश्रीजी, परमपूज्य सिद्धान्तरसाश्रीजी, परमपूज्य नमनकलाश्रीजी, परमपूज्य शासनरसाश्रीजी, परमपूज्य संवेगरसाश्रीजी, परमपूज्य मैत्रीकलाश्रीजी, परमपूज्य नम्रशीलाश्रीजी, परमपूज्य गुरुकृपाश्रीजी म. तथा मुमुक्षु देवांशी विद्यापीठ के प्रांगण में अध्ययनार्थ पधारी। ध्यातव्य है कि पार्श्वचन्द्र गच्छ का यह साध्वीसंघ स्व० प्रवर्तिनी आर्या प. पू. ऊंकारश्रीजी की निश्रा में सन् १९९९ से २००० तक यहाँ रहकर अध्ययन कर चुका है। वर्तमान में नौ साध्वियों में से पाँच साध्वियाँ पार्श्वनाथ विद्यापीठ से पी-एच.डी. करेंगी। अन्य सभी साध्वियों के साथ आप यहाँ रुककर अध्ययन करेंगी।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ में मासिक व्याख्यानमालायें सम्पन्न
जैन धर्म, कला, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्त्व आदि विषयों में रुचि रखने वाले सुधीजनों के लिए पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक के नेतृत्व में लाला हरजसराय जैन स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत दिनांक २०.५.२०१० रविवार को मासिक व्याख्यानमाला का पुनः आरम्भ किया गया। इस व्याख्यानमाला के अन्तर्गत प्रथम व्याख्यान खरतरगच्छ शाखा की आगमज्ञ, विदुषी व सरलमना साध्वी डॉ. सौम्यगुणा श्री जी म.सा. द्वारा दिया गया।
१. 'आलोचना और प्रायश्चित्त'-डॉ. साध्वी सौम्यगुणाश्री
हम अपने दैनिक जीवन में नित्य अनेक अपराध करते हैं। उन अपराधों से निवृत्ति पाने हेतु हमें ऐसा क्या करना चाहिए जिससे पाप कर्म का बन्ध न हो, इसी उद्देश्य को दृष्टि में रखते हुए परम पूज्या साध्वी जी ने अपने सारगर्भित व्याख्यान द्वारा हमारा मार्गदर्शन किया और आलोचना और प्रायश्चित्त के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए दैनिक जीवन में उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया।
२. "जैन इतिहास के महानायक चन्द्रगुप्त व कुमारपाल"डॉ.रमेशचन्द्र जैन
१९ जून २०१० को लालाश्री हरजसराय जैन स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत द्वितीय व्याख्यान “जैन इतिहास के महानायक चन्द्रगुप्त व कुमारपाल"