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विद्यापीठ के प्रांगण में ||
खरतरगच्छ शिरोमणि साध्वी डॉ. सौम्यगुणा श्री जी का
पार्श्वनाथ विद्यापीठ से सानन्द विहार खरतरगच्छ शिरोमणि स्वाध्याय निमग्ना परम पूज्य साध्वी डॉ. सौम्यगुणा श्री जी का साध्वीद्वय डॉ. स्थितप्रज्ञा श्री जी एवं डॉ. संवेगप्रज्ञा श्री जी म.सा. के साथ १ जनवरी २००९ को पार्श्वनाथ विद्यापीठ में अध्ययनार्थ आगमन हुआ था। आपने जैन विश्वभारती लाडनूं से 'जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास' विषय पर पी-एच.डी. की है। अपने इसी विषय को और अधिक विस्तार देने हेतु 'जैन विधि-विधान, तुलनात्मक व समीक्षात्मक अध्ययन' पर आप डी.लिट् कर रही हैं। आपके साथ ही पधारी (मुमुक्षु) मोनिका जी भी जैन विश्व भारती लाडनूं से 'प्रशमरति प्रकरण का दार्शनिक अध्ययन विषय पर पीएच.डी. में संलग्न रहीं। साध्वी सौम्यगुणाश्रीजी ने अपने शोध से सम्बन्धित समस्याओं के सन्दर्भ में काशी हिन्दू विश्वविध्यालय के संस्कृत विद्या के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् प्रो० गोपबन्धु मिश्रा जी से तथा अन्य सम्बन्धित विद्वानों से भी विचार विमर्श किया।
अपने प्रवास के दौरान आपने पार्थनाथ विद्यापीठ में आयोजित अनेक सम्मेलनों एवं व्याख्यानों में अपनी गरिमामयी उपस्थिति से शोध संस्थान का न केवल गौरव बढ़ाया अपितु सारगर्भित व आगमज्ञ वाणी से हमारा मार्गदर्शन भी किया। ३० मई २०१० को आप साध्वीद्वय के साथ पार्श्वनाथ विद्यापीठ से विहार कर भेलुपुर जैन मंदिर पहुंची। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने आपके साथ पद-यात्रा करते हुए आपको विदाई दी। विद्यापीठ के निदेशक प्रो. सुदर्शनलाल जैन, सहनिदेशक डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय आदि ने अपने साथियों के साथ अश्रुपूरित नेत्रों से आपको विदा किया। दिनांक ३१.५.१० को प्रातः मंदिर में पूजा-अर्चन के पश्चात् आपने साध्वीद्वय व सहयोगियों के साथ विदा लेकर चातुर्मास हेतु प्रस्थान किया। आपके भावों की सम्प्रेषणशीलता, सहजता, वाणी की कोमलता सदैव हमारे साथ रहेगी। आप साध्वीद्वय के साथ पार्श्वनाथ विद्यापीठ में पुनः पधारें यही विद्यापीठ परिवार की कामना है।