Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 82
________________ तीर्थंकरकालीन श्रमणियों पर एक विचार दृष्टि : ७३ आदि तथा पद्मावती, सत्यभामा, रुक्मिणी आदि के दीक्षा लेने आदि का वर्णन विस्तार से उपलब्ध होता है, किन्तु वहां भी श्रमणी प्रमुखा के जीवन-वृत्त के विषय में शास्त्रकार मौन हैं। इससे यह ध्वनित होता है और बहुत सम्भव है कि राम और कृष्ण को हिन्दुओं में अवतार के रूप में मान्य होने के कारण जैन साहित्य में भी उनका विशिष्ट रूप वर्णन हुआ हो तथा उनके साथ रामायण तथा महाभारतकालीन नारियों को भी विशेष महत्त्व मिला हो। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि रामायण काल की जितनी भी महिलाओं के श्रमणी जीवन अपनाने का वर्णन मिलता है, वे प्रायः राम या रघुवंश से सम्बन्धित हैं। मन्दोदरी का सम्बन्ध रावण से है वह भी राम के कारण ही है। उधर अरिष्टनेमि के काल की जितनी श्रमणियों के जीवन-वृत्त उपलब्ध होते हैं,उन सबका सम्बन्ध 'कृष्ण' के साथ है, प्रायः वे सभी यदुवंश की नारियां थीं। . इसी सन्दर्भ में जब हम तीर्थंकर पार्श्वनाथ के काल का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि वहां भी श्रमणी प्रमुखा पुष्पचूला का सामान्य वर्णन भी उपलब्ध नहीं होता और दूसरी ओर तीर्थंकर पार्श्वयुग की २६ श्रमणियों के उल्लेख हैं जिनका श्रमणी रूप कम शिथिलाचारी रूप अधिक प्रकट हुआ है। उनके नाम, माता-पिता, पति एवं जन्म स्थान आदि नामों के साथ वे मृत्यु प्राप्त कर कहां उत्पन्न हुईं, भविष्य में कहां जायेंगी, उन सबका विस्तृत वर्णन ज्ञाताधर्मसूत्र और पुष्पचूलिका सूत्र में प्राप्त होता है। अतः तीर्थंकर पार्श्व के काल में पुष्पचूला और सुव्रता के अलावा अन्य किसी ऐसी श्रमणी का उल्लेख नहीं मिलता जिसका श्रमणी जीवन विशिष्टता सम्पन्न हो। तीर्थंकर अरिष्टनेमि और पार्श्वनाथ के समय में ८४ हजार ६५० वर्षों का सुदीर्घ अन्तराल होने पर भी अरिष्टनेमि काल की १९ साध्वियों का जीवन-वृत्त और पार्श्वनाथ काल की दो श्रमणियों का उल्लेख मिलना एक विचारणीय प्रश्न छोड़ जाता है। चौबीस तीर्थंकरों की प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध, परिचयप्राप्त या नामप्राप्त ३१७ श्रमणियों का वर्णन क्रमशः इस प्रकार मिलता हैतीर्थकर काल की ३१७ श्रमणियांप्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के समय की तीन साध्विया-ब्राह्मी, सुन्दरी, सुलोचना। द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ के समय की तीन साध्विया- फल्गु, विपुला, सुलक्षणा। बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के समय की चार साध्वियां- धारिणी, रोहिणी, मनोहारी और मेघमाला (शिथिलाचारिणी)। बीसवें तीर्थंकर काल की श्वेताम्बर-दिगम्बर परम्परा की सम्मिलित १४ श्रमणियांपुष्पवती, पुरन्दरयशा, मंदोदरी, चन्द्रनखा, कैकेयी, सीता, अंजना, मनोदया, गणिनी

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