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श्रमण, वर्ष ६१, अंक २
अप्रैल-जून १०
तीर्थंकरकालीन श्रमणियों पर एक विचार दृष्टि
-श्रमणी डॉ. विजयश्री आर्या
[ जैन ग्रन्थों में हमें सदाचार एवं पतिव्रत धारण करने वाली स्त्रियों के पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं। इनके सम्बन्ध में कहा गया है कि ये स्त्रियां ही तीर्थङ्करों को जन्म देने वाली हैं तथा ये मातृरक्षिता, पितृरक्षिता, भ्रातृरक्षिता, कुलगृहरक्षिता एवं श्वसुरकुलरक्षिता आदि हैं। धर्म के क्षेत्र में दीक्षित साध्वियों को उपलब्ध इतिहास की पृष्ठभूमि में देखें तो जहां महावीर के श्रमण संघ में १४,००० साधुओं का उल्लेख मिलता है वहीं ३६,००० साध्वियों का भी उल्लेख मिलता है किन्तु इतिहास के पन्नों पर इनके नामो-निशां को खोजने का प्रयास करें तो कुछ प्रकीर्ण सन्दर्भो को छोड़ कर प्रायः निराशा ही हाथ लगती है। प्रस्तुत लेख में ऐसी ही त्याग की प्रतिमूर्ति साध्वियों के चरण-चिह्नों को जैन इतिहास और आगमों की पगडंडियों पर खोजने का प्रयास कर रही हैं- साध्वीवर्या डॉ. विजयश्री आर्या।]
जैन आगम साहित्य का अवलोकन करने पर यह तथ्य स्पष्ट होता है कि भगवान् ऋषभदेव से लेकर महावीर तक के प्रत्येक तीर्थंकर के काल में श्रमणियों की संख्या हजारों या लाखों में थी। यदि सभी आचार्यों, श्रुतधरों और तीर्थंकरों के कालों की सभी श्रमणियों की संख्या को सम्मिलित किया जाये तो गणनातीत संख्या में श्रमणियां हो चुकी हैं। किन्तु खेद है कि संयम और त्याग की साक्षात् मूर्ति भगवती स्वरूप इन श्रमणियों का सम्पूर्ण इतिहास अतीत की गोद में विलुप्त हो कर रह गया है। उनका नाम तक आज उपलब्ध नहीं है। २३ तीर्थंकरों के शासन काल के साक्षी अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने उन अज्ञात श्रमणियों में से कितनों को शब्दायित किया है, यह प्रयत्न पूर्वक खोजने पर भी नहीं मिलता। वर्तमान आगम साहित्य और प्राचीन ग्रंथों में तीर्थंकरों की प्रमुखा श्रमणियों के नाम और शेष श्रमणियों की मात्र संख्या ही उपलब्ध होती है। प्रमुखा श्रमणियों में प्रथम तीर्थंकर की शिष्या ब्राह्मी-सुन्दरी तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर की प्रमुखा शिष्या चन्दनबाला का यत्किंचित् वृत्तान्त उपलब्ध होता है। शेष श्रमणियां जो तीर्थंकरों के विशाल श्रमणी संस्था की संवाहिका रहीं, उनका वृत्तान्त न मिलना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। यद्यपि बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत एवं बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के समय की कुछ अन्य श्रमणियां के भी वृत्तान्त हैं, जिन्होंने जीवन के चतुर्थ भाग में श्रमणी दीक्षा अंगीकार कर ली थी। सीता, मन्दोदरी, कैकेयी