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जिज्ञासा और समाधान
(१) जिज्ञासा- श्वेताम्बर और दिगम्बर जब दोनों एक ही धर्म को मानने वाले हैं तो फिर उनमें क्या अन्तर है? और यह अन्तर कैसे आया?
प्रश्नकर्ता- डा० मनोरमा जैन, वाराणसी
समाधान*- श्वेताम्बर और दिगम्बर जैनों में क्या अन्तर है इसे जानने से पूर्व इसके इतिहास-क्रम को जानना आवश्यक है। आज से २५३६ वर्ष पूर्व चौबीसवें तीर्थङ्कर भगवान् महावीर (जन्म ई. पूर्व ५९९) के निर्वाण (ई. पूर्व ५२७) के १६२ वर्षों तक (चन्द्रगुप्त के शासनकाल तक) जैन संघ में कोई मतभेद नहीं था। महावीर के बाद गौतम, सुधर्मा और जम्बू स्वामी ये तीनों गणधर केवली (अनुबद्ध केवलज्ञानी) हुए।
जम्बू केवली के बाद श्वेताम्बर परम्परानुसार क्रमशः प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय और भद्रबाहु ये पाँच चौदह पूर्वो के ज्ञाता हुए। संभूतिविजय
और भद्रबाहु ये दोनों यशोभद्र के शिष्य थे। संभूतिविजय के शिष्य स्थूलभद्र थे। दिगम्बर-परम्परानुसार जम्बूस्वामी के बाद विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन
और भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली (आगमज्ञ) हुए। इस तरह भद्रबाहु को दोनों परम्पराओं ने मान्य किया। इसके बाद निमित्तज्ञानी भद्रबाहु चन्द्रगुप्त के शासनकाल में मगध में पड़ने वाले १२ वर्षीय अकाल को जानकर अपने संघ के साथ दक्षिण में समुद्र तट की ओर चले गए। जो शेष साधु बचे वे स्थूलभद्र (निर्वाण, वी.नि. सं. २१९) के नेतृत्व में वहीं रह गए। ___अकाल के दूर होने पर पाटलिपुत्र में स्थूलभद्र ने जैन साधुओं का एक सम्मेलन बुलाया जिसमें मौखिक परम्परा से चले आ रहे ग्यारह अंग ग्रन्थों का संकलन किया गया। बारहवाँ अंग 'दृष्टिवाद' भद्रबाहु के अलावा किसी दूसरे को याद नहीं था। उनकी अनुपस्थिति से उसका संकलन नहीं हो सका। इसके बाद आर्य स्कन्दिल (ई. सन् ३००-३१३) के नेतृत्व में मथुरा में दूसरा सम्मेलन हुआ। करीब इसी समय नागार्जुनसूरि के नेतृत्व में वलभी (सौराष्ट्र) में भी एक सम्मेलन हुआ। इसके बाद दोनों नेता आपस में नहीं मिल सके जिससे आगमों * प्रो. सुदर्शन लाल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
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