Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 112
________________ जिज्ञासा और समाधान : १०३ ग्रन्थ उपलब्ध हैं परवर्ती कुन्दकुन्दाचार्य आदि के ग्रन्थ आगमवत् हैं। १६. आगम अर्धमागधी प्राकृत में १६. जैन शौरसेनी प्राकृत में आगम लिखित हैं। लिखित हैं। १७. स्वर्ग १२ हैं और उनके मुख्य १७. स्वर्ग १६ हैं परन्तु उनके मुख्य इन्द्र भी १२ हैं। इन्द्र १२ ही हैं। सब मिलाकर इन्द्रों की संख्या १०० है। १८. मुनि के २७ मूल गुण हैं। १८. मुनि के २८ मूल गुण हैं। दिगम्बरों के मूलगुणों से कुछ अन्तर भी है। १९. तीर्थङ्कर की माता को १४ स्वप्न १९. तीर्थङ्कर की माता को १६ स्वप्न आते हैं। आते हैं। केवली के ऊपर उपसर्ग २०. नहीं। सम्भव है। २१. मानुषोत्तर पर्वत से आगे मनुष्य २१. नहीं। जा सकता है। २२. अंगग्रन्थों के संकलन हेतु २२. नहीं। वाचनायें हुईं। २३. पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्म २३. ऐसा नहीं है, परन्तु (अहिंसा, सत्य, अचौर्य और सामायिकादि चार प्रकार के अपरिग्रह) को महावीर ने चारित्र में छेदोपस्थापना चारित्र पञ्चयाम (ब्रह्मचर्य जोड़कर) जोड़कर पञ्चयाम किया। इस किया। इस परिवर्तन का कारण परिवर्तन में श्वेताम्बरवत् कारण था मनुष्यों की विचार-शक्ति की थे। भिन्नता। तीर्थंकर आदिनाथ के जीव ऋजु-जड़ थे। दूसरे से तेईसवें तीर्थंकर के काल के जीव ऋजुप्राज्ञ थे परन्तु महावीर के काल के जीव वक्र-जड़ थे। २४. पार्श्वनाथ के शिष्य केशी का २४. ऐसा उल्लेख नहीं है। अचेल, महावीर के शिष्य गौतम के पश्चयाम तथा रत्नत्रय धर्म इन्हें

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