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१०२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१०
६. केवलज्ञानी कवलाहार ६. केवलज्ञानी का शरीर परम - (भोजन) करते हैं।
औदारिक हो जाता है अतः भोजन
ग्रहण की आवश्यकता नहीं है। ७. केवलज्ञानी नीहार (मल- ७. नहीं।
मूत्रादि का विसर्जन करते हैं। ८. मरुदेवी को हाथी पर चढ़े हुए ८. नहीं।
ही मुक्ति हो गई। ९. साधु के लिये पहले १४ ९. साधु को संयम-रक्षणार्थपिच्छी,
उपकरण ग्राह्य थे अब और कमण्डल और शास्त्र उपकरणही अधिक हो गए हैं।
स्वीकृत हैं, अन्य नहीं। वस्त्राभूषण युक्त (अलंकृत) १०. नहीं, पूर्ण दिगम्बर प्रतिमा प्रतिमा पूज्य है। प्रतिमा की (पद्मासन या खड्गासन मुद्रा संरचना में भी थोड़ा अंतर है। में) ही पूज्य है। उनकी
ध्यानमुद्रा ऐसी हो जिसमें चक्षु अधखुली अवस्था (नासाग्र दृष्टि) में हो तथा शरीर से
वीतरागता प्रकट होती हो। ११. भगवान् महावीर का ११. नहीं, क्षत्रियाणी के गर्भ में ही
गर्भपरिवर्तन (ब्राह्मणी के गर्भ से अवतरण हुआ था। क्षत्रियाणी के गर्भ में) हुआ था। भगवान् महावीर का विवाह हुआ १२. दोनों नहीं।
था और एक कन्या भी हुई थी। १३. महावीर तपकाल में १२ मास १३. नहीं।
तक वस्त्र पहने रहे। १४. साधुओं और साध्वियों के द्वारा १४. विधि मिलने पर एक ही घर में
कई घरों से भिक्षाचर्या लाकर खड़े-खड़े अंजुली में एक बार एकाधिक बार आहार करना। ही आहार, पानी आदि लेना
'साध्वियां बैठकर आहार करती
हैं यह अन्तर है। १५. ग्यारह अंग-आगम उपलब्ध हैं १५. समस्त अंग और पूर्वो का लोप
परन्तु दृष्टिवाद और पूर्वो का हो गया है। पूर्वो पर आधारित लोप हो गया है।
षट्खण्डागम तथा कषायपाहुड
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