Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 107
________________ विशिष्ट व्यक्तित्व सम्प्रदायातीत आचार्य श्री महाप्रज्ञ आचार्यश्री महाप्रज्ञ राजस्थान के उन सन्त विभूतियों में गिने जाते हैं जिन्होंने जन-कल्याण की दिशा में नवीन अवधारणाएं दीं। इनके बहुआयामी व्यक्तित्व ने शैक्षणिक, सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में अनेक कीर्तिमान गढ़े। उन्होंने अपने गहन ज्ञान, दूरदर्शी दृष्टि एवं प्रज्ञा से पूरे विश्व को आलोकित किया। झुंझनु जिले के 'टमकोर' गाँव में बालूजी परिवार में तोलाराम चोरड़िया के पुत्र रूप में १४ जून १९२० आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी को आपका जन्म हुआ। आपमें १० वर्ष की उम्र में ही वैराग्य भाव जाग्रत हो गया और आचार्य कालूगणि की निश्रा में २९ जनवरी १९३१ में सरदार शहर में हुए मर्यादा महोत्सव में तेरापंथ धर्म संघ में आप दीक्षित हो गये । यहाँ उन्हें 'मुनि नथमल' नाम दिया गया। आचार्य कालूगणी ने आपको अध्ययनार्थ आचार्य तुलसी के पास भेजा जो कालान्तर में नवमें आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए। १९६५ में आचार्य तुलसी ने मुनि नथमल को तेरापंथ का निकाय - सचिव नियुक्त किया। नवम्बर १९७८ में आचार्यश्री ने मुनि नथमल को 'महाप्रज्ञ' नाम दिया। १९७९ में आपको युवाचार्य पद प्रदान किया गया जो कि आचार्य के बाद दूसरा सबसे बड़ा पद था। तभी से आप युवाचार्य महाप्रज्ञ कहलाने लगे। अपने दीक्षा पर्याय के २०वें वर्ष में महाप्रज्ञजी ने ध्यान की महत्ता का अनुभव किया और ध्यान के विषय में उन्होंने नूतन आध्यात्मिक प्रयोग प्रारम्भ किया तथा प्रेक्षाध्यान के विभिन्न वैज्ञानिक उपक्रम के अन्तर्गत कई विशिष्ट प्रयोग निर्दिष्ट किये। उन्होंने मस्तिष्क से परे सोचा और अन्तः प्रज्ञा के क्षेत्र में प्रवेश किया तथा प्रेक्षाध्यान के माध्यम से जीवन विज्ञान को समझने की शिक्षा दी। १९९५ को आचार्य तुलसी ने तेरापंथ के दसवें आचार्य के रूप में उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसी वर्ष वे जैन विश्व भारती, लाडनूं के अनुशास्ता भी बनाये गये । ५ दिसम्बर २००१ को मानव में अहिंसक चेतना के जागरण तथा नैतिक मूल्यों के विकास के लिये आचार्यश्री ने सुजानगढ़ से एक ऐसी अहिंसा-यात्रा प्रारम्भ की जिसने अहिंसा, सौहार्द, भ्रातृत्व एवं शान्ति का संदेश प्रसारित किया और पूरे देश में अनेक स्थलों पर अहिंसा के केन्द्र खोले गये । डॉ. शारदा सिंह, शोधाधिकारी, पार्श्वनाथ विद्यापीठ

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