Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 83
________________ ७४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल - जून - १० अनुद्धरा, गणिनी वरधर्मा, गणिनी बंधुमति, गणिनी श्रीमती, गणिनी शशिकान्ता, प्रवर्तिनी चरणश्री । बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के काल की १९ श्रमणियां यक्षिणी, राजीमती, शिवा, द्रौपदी, सत्यभामा, रुक्मिणी, पद्मावती, गौरी, गांधारी, सुसीमा, लक्ष्मणा, जाम्बवती, मूलश्री, मूलदत्ता, कनकवती, केतुमंजरी, एकनाशा, कमलामेला और सुव्रता । तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रमुख श्रमणियां- पुष्पचूला, सुव्रता । शेष ज्ञाताधर्म एवं पुष्पचूलिका में प्राप्त २१६ श्रमणियां तथा आवश्यकनिर्युक्ति में प्राप्त पाण्डुरार्या आदि कुल २१७ श्रमणियां (शिथिलाचारी) । चौबीसवें तीर्थंकर महावीर के काल की ३५ श्रमणियां- चंदनबाला, देवानंदा, प्रियदर्शना, पद्मावती, प्रभावती, मृगावती, शिवानंदा, अंगारवती, मदनमंजरी, ज्येष्ठा, - जयन्ती, नंदा आदि श्रेणिक की १३ एवं २३ महारानियां एवं दुर्गन्धा आदि कुल ३५ श्रमणियों का वर्णन प्राप्त होता है। शेष १७ तीर्थंकरों की एक-एक प्रमुखा श्रमणी को परिगणित कर लें तो चौबीस तीर्थंकरों की कुल ३१७ श्रमणियों के उल्लेख आगम एवं आगमिक व्याख्याओं में प्राप्त होते हैं। बारहवें तीर्थंकर की साध्वी मेघमाला एवं पार्श्व तीर्थंकर की २१६ श्रमणियां तथा एक पाण्डुरार्या ये २१८ श्रमणियां शिथिलाचारी के रूप में प्रसिद्ध हुईं। कुछ अनंग सुन्दरी जैसे- मदनरेखा आदि साध्वियां पार्श्व एवं महावीर के काल में किसी समय हुईं थीं ऐसा उल्लेख मिलता है। इनमें विशिष्ट श्रमणियां तो मात्र ९९ ही हैं, शेष शिथिलाचारी की श्रेणी में आती हैं। इन ९९ श्रमणियों में लगभग ६५ श्रमणियों के अल्पाधिक जीवनवृत्त प्राप्त होते हैं, शेष के वह भी नहीं। जहां तीर्थंकरकाल की सम्पूर्ण साध्वियों की संख्या अड़तालीस लाख आठ सौ सत्तर हजार आंकी गयी (कहीं-कहीं चौरासी लाख चार सौ पच्चीस हजार ) है, उनमें मुट्ठी भर श्रमणियों के उल्लेखों से यह समझा जा सकता है कि हमारा इतिहास कहां तक कालकवलित हो गया है। आवश्यकता है कि जो कुछ शेष बचा है, उसे प्राचीन भण्डारों से निकलवा कर उनका सर्वेक्षण करवाया जाय ताकि इतिहास में उन साध्वियों की मौजूदगी के साथ न्याय हो सके। सन्दर्भ-ग्रन्थः १. जैन धर्म का मौलिक इतिहास, आचार्य हस्तीमलजी २. आवश्यक निर्युक्ति, भद्रबाहु, हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला ३. बड़ी साधु वन्दना, आचार्य जयमल जी महाराज

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