Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 64
________________ जैन धर्म में शांति की अवधारणा : ५५ मानसिक-शान्ति की बाह्य अभिव्यक्ति है। आचारांगसूत्र में श्रमण भगवान् महावीर उद्घोषित करते हैं-'भूतकाल में जो तीर्थंकर भगवान् हो गए हैं, वर्तमान में जो हैं और भविष्य में जो होंगे-वे सब इस प्रकार से बोलते हैं, कहते हैं, समझाते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि सभी प्राणियों (द्वीन्द्रियादि), सभी भूतों (वनस्पति), सभी जीवों (पंचेन्द्रिय) और सभी सत्त्वों (पृथ्वीकायादि) को दण्डादि से नहीं मारना चाहिए, उन पर आज्ञा नहीं चलाना चाहिए, उन्हें दास की भाँति अधिकार में नहीं रखना चाहिए, उन्हें शारीरिक व मानसिक सन्ताप नहीं देना चाहिए और उन्हें प्राणों से रहित नहीं करना चाहिए। यही धर्म शुद्ध है, नित्य है और शाश्वत है।"१६ अन्य शब्दों में, अहिंसा धर्म का विशुद्ध और शाश्वत रूप है। जैनधर्म में अहिंसा वह धुरी है, जिसके इर्द-गिर्द उसका सम्पूर्ण आचारशास्त्र परिभ्रमण करता है। जैनधर्म के अनुसार हिंसा सभी दुर्गुणों का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि अहिंसा सभी सद्गुणों का प्रतिनिधित्व करती है। अहिंसा एकल गुण नहीं है, अपितु सद्गुणों का समूह है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में अहिंसा शब्द को शांति, सद्भाव, कल्याण, विश्वास, निर्भरता- के साथ समीकृत किया गया है। इस प्रकार अहिंसा एक व्यापक शब्द है, जिसमें सदाचार के सभी मानदण्ड और सभी सद्गुण सन्निहित हैं। ___ वस्तुतः, अहिंसा समस्त प्राणीजगत् के साथ समान व्यवहार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। समानता की अवधारणा अहिंसा के सिद्धान्त का केन्द्रीय तत्त्व है। जीवन के प्रत्येक रूप का सम्मान करना, अहिंसा का पालन करना है। जैनधर्म जाति, रंग और पंथ के आधार पर मनुष्यों में भेद नहीं करता है। उसके अनुसार ये सभी बंधन या सीमाएं कृत्रिम हैं, मनुष्य निर्मित हैं। सभी मनुष्यों को शान्तिपूर्ण जीवन जीने का समान अधिकार है। यद्यपि हिंसा अपरिहार्य है, फिर भी यह हमारे जीवन का मार्गदर्शक सिद्धान्त नहीं हो सकता है। इसका कारण यह है कि यह हमारे प्राकृतिक-नियमों की अवधारणा और विवेक-बुद्धि के आधार पर निर्णय लेने के विरुद्ध सिद्धान्त है। यदि मैं सोचता हूँ कि किसी को भी मेरा जीवन समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं है, ठीक उसी प्रकार से मुझे भी अन्य प्राणियों का जीवन समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। 'दूसरों के जीवन की कीमत पर जीना' या 'दूसरों को मारकर जीना' का सिद्धान्त अपनेआप में विरोधाभासी है। समानता का सिद्धान्त मानता है कि हर-एक को जीने का अधिकार है। जीवन का मार्गदर्शक सिद्धान्त 'दूसरों के जीवन की कीमत पर जीना' या 'दूसरों को मारकर जीना' न होकर 'दूसरों के साथ जीना' या 'दूसरों के लिए जीना है। (परस्परोपग्रहो जीवानाम्)। यद्यपि सांसारिक-जीवन में पूर्ण

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