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६० : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २/ अप्रैल-जून-१०
विचारधारा एवं धार्मिक सिद्धान्तों का विरोध करते समय उन्हें पूर्ण आदर देना चाहिए तथा यह भी स्वीकार करना चाहिए कि उनकी धारणाएं भी किसी निश्चित दृष्टिकोण से न्यायसंगत हो सकती हैं।
धर्मोन्माद और असहिष्णुता फैलाने वाले कारणों में अंधविश्वास प्रमुख है। यह मिथ्यात्वमोह का परिणाम है, अतः धर्म के प्रति यह अविवेकपूर्ण दृष्टिकोण है। जैनाचार्यों के अनुसार मोह (मूर्छा) बंधन का प्रधान कारण है। यह विपर्यस्त बुद्धि का भी कारण है। जैनधर्म में मोह के विभिन्न प्रकार बताए गए हैं। उनमें दर्शन-मोह या दृष्टिराग (अन्धविश्वास) अपनी प्रकृति के अनुसार सर्वोपरि है। यह धार्मिक असहिष्णुता का केन्द्रीय तत्त्व है। इसके कारण व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं को ही एकमात्र सत्य समझता है और अपने से विरोधी मान्यताओं और विश्वासों को असत्य मानता है, इसलिए वीतरागता सम्यक् दृष्टिकोण की सर्वप्रथम शर्त है। दुराग्रहपूर्ण मनोवृत्ति के कारण व्यक्ति वस्तु के यथार्थ स्वरूप के सम्बन्ध में सम्यक् विचार करने में ठीक उसी प्रकार असमर्थ हो जाता है, जिस प्रकार पीलिया की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति या अपनी आँखों पर रंगीन चश्मा चढ़ाया हुआ व्यक्ति वस्तुओं का सही रंग देखने में असमर्थ हो जाता है। दार्शनिकचिन्तन के क्षेत्र में राग और द्वेष दो बहुत बड़े शत्रु हैं, सत्य तो वीतरागदृष्टि से ही प्रकट हो सकता है। ___ एक निष्पक्ष और पूर्वाग्रह से रहित व्यक्ति ही अपने विरोधियों की विचारधारा एवं धर्म में निहित सत्यांशों को समझ सकता है और इसी प्रकार उन्हें भी चिन्तन करने के लिए प्रेरित कर अपनी विचारधारा और धर्म को निन्दित होने से बचा सकता है।
धार्मिक-नेताओं, मताग्रहों, धार्मिक सिद्धान्तों और कर्मकाण्डों के प्रति रागात्मक दृष्टि व्यक्ति में अन्धविश्वास का कारण बनती है, परिणामतः, समाज में धार्मिक असहिष्णुता और धर्मोन्माद का वातावरण निर्मित होता है।
जैनधर्म कहता है कि एक सत्यान्वेषी या वीतरागता को पाने की अभिलाषा रखने वाले के लिए अपने धर्मगुरु, धर्मग्रन्थों और साधना-मार्ग के प्रति रागभाव रखना भी उसके आध्यात्मिक विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। राग, धर्म के प्रति हो या धर्म विरुद्ध द्वेष के बिना नहीं रह सकता है। वस्तुतः रागात्मकतता अन्धविश्वास पैदा करती है और अन्धविश्वास से घृणा, असहिष्णुतापूर्ण आचरण की उत्पत्ति होती है, इसलिए जैनाचार्य व्यक्ति को रागात्मकता से ऊपर उठ जाने पर जोर डालते हैं, क्योंकि यही पक्षतापूर्ण दृष्टिकोण और असहिष्णुतापूर्ण आचरण का मूल कारण है।