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जैन धर्म में शांति की अवधारणा : ६३
साथ समान व्यवहार करता है। उसका दृष्टिकोण किसी के प्रति राग या द्वेष पर आधारित नहीं होता है। स्याद्वाद (अनेकान्तवाद) का सच्चा प्रेमी वही है, जो सभी धर्मों एवं आस्थाओं के प्रति समादर-भाव रखता है। सभी धर्मों के प्रति आदरभाव होना ही धार्मिक होने का सार है। धर्मग्रन्थों का एकपक्षीय गहन ज्ञान होने की तुलना में उनका अल्पज्ञान भी यदि व्यक्ति को उदार होने के लिए प्रेरित करता है, तो वह अधिक मूल्यवान है।२८
जैनाचार्य विश्व के सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते हैं, परन्तु एकता से उनका आशय सर्वग्रासी एकता से नहीं है, अपितु धर्मों की उस विशेष प्रकार की एकता से है, जिसमें सभी धर्मों में समान रूप से प्रतिपादित सद्गुणों के आधार पर वे सभी धर्म परस्पर एक दूसरे से जुड़ें तथा जिसमें प्रत्येक धर्म का स्वतंत्र अस्तित्व एवं पहचान अक्षुण्ण रहे, साथ ही सभी धर्मों के प्रति समादर भाव हो। दूसरे शब्दों में, वे सभी धर्मों के सौहार्दपूर्ण, सहअस्तित्व और मानवजाति में शान्ति स्थापित करने के लिए कार्य करने में विश्वास करते हैं। धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा को रोकने एवं संघर्षों को समाप्त करने के लिए कुछ लोग एक धर्म का नारा दे सकते हैं, परन्तु मानवीय विचारों में विविधता विद्यमान होने से न तो यह संभव है और न ही व्यावहारिक है। नियमसार में कहा गया है-'इस जगत् में भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्ति हैं और उनके भिन्न-भिन्न कर्म या गतिविधियाँ हैं और उनकी क्षमताएँ एवं योग्यताएँ भी भिन्न-भिन्न हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह धर्म के क्षेत्र में होने वाले उग्र विवादों या धर्म के नाम पर निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए होने वाले आन्दोलनों में अपने-आपको संलिप्त नहीं करें।२९
समदर्शी आचार्य हरिभद्र स्पष्ट रूप से कहते हैं-'ऋषियों के उपदेशों में जो भिन्नता है, वह उपासकों की योग्यता में भिन्नता या उन ऋषियों के दृष्टिकोण में भिन्नता या देशकालगत आधार में भिन्नता पर आधारित है। जिस प्रकार से एक वैद्य अलग-अलग व्यक्तियों को उनकी प्रकृति की भिन्नता, अथवा रोग की भिन्नता के आधार पर भिन्न-भिन्न औषधि प्रदान करता है, यही बात धार्मिक उपदेशों की भिन्नता पर भी लागू होती है।'३० इस प्रकार साधकों या उपासकों में देश, काल, परिस्थिति, वैयक्तिक योग्यता और स्वभावगत विविधताएँ अपरिहार्य हैं, अतः इन विविधताओं के कारण होने वाले धार्मिक संघर्षों का निराकरण करने के लिए मानवीय समाज में एक उदार दृष्टिकोण और विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव विकसित करना आज की चरम आवश्यकता है। इस प्रकार जैनों का अनेकान्तवाद