Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 27
________________ १८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१० सूत्र भी बताये गये हैं जिनका पालन आवश्यक है।३८ भूमि का ढलान जिस कोण में होगा उसी के अनुरूप लाभ-हानि होगा इसका भी विस्तार से वर्णन है, तथा जिस प्रकार की भूमि होगी गृहस्वामी उसी प्रकार की लाभ-हानि को प्राप्त करेगा। ऐसे वर्णन अन्य कई आधुनिक वास्तुविदों के ग्रन्थों में भी मिलते हैं। विस्तार के लिए उन ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक है। कौन सी राशि वाले को कौन सी दिशा का गृह शुभ रहता है यह भी विचार किया जाता है, जैसे- कर्क राशि वाले व्यक्ति के लिये पूर्वदिशामुखी मकान शुभ रहता है वैसे ही अन्य सभी राशियों के बारे में विस्तार से बताया गया है। मिट्टी-परीक्षण में किस वर्ण की और कैसी भूमि का उपयोग होना चाहिए इसके बारे में 'मुहूर्त गणपति' नामक पुस्तक में यह श्लोक दिया गया है- श्वेता भूमिस्तु विप्राणांरक्तमा शास्ता धनुर्भृताम् ११ विशां पीताऽददत शूद्राणां श्यामा मिश्रेतरस्य च। अर्थात् श्वेत मिट्टी ब्राह्मण (विद्वान्) के लिए, लाल रंग की मिट्टी क्षत्रिय के लिए, पीले रंग की मिट्टी वैश्य के लिए तथा काली मिट्टी (शुद्र) के लिए होती है तथा स्वाद भी क्रमशः मीठा, तीखा, खट्टा एवं कड़वा होता है। इस भूमि का पानी पीकर मिट्टी के स्वाद का पता लगता है। मकान प्रारम्भ करने का समय अप्रैल-मई, जुलाई-अगस्त, फरवरी और मार्च शुभकारी है। इसके अतिरिक्त अन्य माह अशुभ हैं। उपर्युक्त अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि जो मन को प्रसन्न करे वह कला है। ६४ एवं ७२ कलाओं में वास्तु भी एक कला थी जिसको वास्तु-शिल्प भी कहते हैं। वास्तु गृह निवास या निवास अर्थ में प्रयुक्त होता है। बाद में चलकर वास्तु-पुरुष की पूजा का भी प्रचलन हुआ। प्राचीन काल में देवालयों, जिनालयों, मन्दिरों, मूर्तियों, चैत्यालयों, प्रमद वनों, परकोटों, नगरों, आस्थान-मंडपों, वापिकाओं, दीर्घिकाओं, समोसरण-रचनाओं में वास्तुकला का दिग्दर्शन होता है, समोसरण वर्णन में तो वास्तुकला ने अपनी पराकाष्ठा का रूप धारण कर लिया तब यह माना जाने लगा कि इसमें देवों ने अपनी सारी शक्ति लगा दी है। ऐसी अत्यन्त भव्य, रोचक, अतिरमणीय, समोसरण रचना मनुष्य से संभव नहीं है। इन सभी में वास्तु के नियमों का पालन करते हुए उसे रोचक, रमणीय, अत्यन्त मनमोहक बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के रंगीन मणियों, हीरेजवाहरात, रत्नचूर्णि, उबटन एवं सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग किया गया है, चाहे वह राजा का प्रासाद हो, नगर हो, प्राकार हो, चाहे मन्दिर की मूर्ति हो सभी को वास्तु-कला ने अत्यन्त रोचक बना दिया है।

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