Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 34
________________ जैनागमों में शिक्षा का स्वरूप : २५ इमा विज्जा महाविज्जा, सब्बविज्जाण उत्तमा । जं विज्जं साहइत्ताणां, सव्वदुक्खाण मुच्चती ।। जेण बन्धं च मोक्खं च, जीवाणं गतिरागतिं । आयाभावं च जाणाति, सा विज्जा या दुक्खमोयणी ।। अर्थात् वही विद्या महाविद्या है और सभी विद्याओं में उत्तम है, जिसकी साधना करने से समस्त दुःखों से मुक्ति होती है। जिस विद्या से बंध और मोक्ष का, जीवों की गति और अगति का ज्ञान होता है तथा जिससे आत्मा के शुद्ध स्वरूप का साक्षात्कार होता है, वही विद्या सम्पूर्ण दुःखों को दूर करने वाली है। ज्ञान और चरित्र जैन आगमों में आचार्य, उपाध्याय एवं श्रमण/श्रमणियों को विद्या प्रदान करने का अधिकार दिया गया। आचार्य श्रुत-ज्ञान के प्रकाशक होते हैं अतः कहा गया है जब दीवा दीवसमं, पइप्पए सो य दिप्पए दीवो । दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेति ।। अर्थात् जैसे एक दीपक से सैकड़ों दीपक जल उठते हैं और वह स्वयं भी जलता रहता है, वैसे ही आचार्य होते हैं, वे स्वयं प्रकाशमान रहते हैं और दूसरों को भी प्रकाशित करते रहते हैं। बोधपाहुड़ में कहा गया है कि आचार्य वे हैं, जो कर्म को क्षय करने वाली शुद्ध दीक्षा और शुद्ध शिक्षा देते हैं।' जैन धर्म में श्रावक-श्राविकाओं को भी श्रुतज्ञान प्राप्त करने को कहा गया है। श्रुतज्ञान दो प्रकार से प्राप्त होता है-आचार्यों, उपाध्यायों या श्रमणों द्वारा अथवा अपने स्वयं की प्रेरणा द्वारा। लेकिन उस ज्ञान का कोई महत्त्व नहीं, जो आचार में परिणत नहीं हो। आचार्य उमास्वाति ने कहा है सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।० सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों की सम्मिलित आराधना द्वारा मोक्ष का मार्ग उपलब्ध होता है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है नादसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्यि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ।।११ अर्थात् सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्रगुण निष्पन्न नहीं होता। चारित्रगुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नहीं होता और मोक्ष के बिना परमशांति का लाभ नहीं होता। इसी बात को एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझाया गया है

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