Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 46
________________ प्राकृत साहित्य में अंकित नारी : ३७ विज्ञान भी। फिर उसने गाथा, दोहा, और छप्पय का स्वरूप जान लिया। उसने चौरासी बन्धों का स्वरूप जान लिया तथा राग और सत्तर स्वरों को भी। पाँच शब्दों और चौसठ कलाओं को भी जान लिया। फिर गीत, नृत्य और प्राकृत काव्य को भी जान लिया। उसने सब शास्त्र और पुराण जान लिये। अन्त में छह भाषायें एवं षड्दर्शन भी जान लिये। छियानवे सम्प्रदायों को भी उसने जान लिया। उसने सामुद्रिक शास्त्र के लक्षणों को भी शीघ्र समझ लिया। उसने चतुर्दश विद्याओं को पढ़ लिया। औषधियों और भावी घटनाओं के समूह का उसे ज्ञान हो गया। छियानवे व्याधियाँ वह उंगलियों पर गिना सकती थी। बहुत से देशों की मुख्य भाषाओं को भी उसने सीख लिया। उसने अठारह लिपियाँ भी जान ली। नौ रसों और चार वर्गों को उसने जान लिया। जिनशासन के अनुसार चारित्र और निर्वेद विद्या को भी जान लिया। दुस्सह रति और कामार्थ में उसे कोई जीत नहीं सकता था? उसने क्षपणक मुनि के पास जीवों के अट्ठानवे समासों का अध्ययन किया। समाधिगुप्त मुनि के पास उसने इन समस्त-शास्त्रों को अच्छी तरह जान लिया। __ स्वेच्छा से पति-वरण की स्वतंत्रता के लिए स्वयंवरों का आयोजन इस युग में भी होता था जिसका वर्णन प्राकृत साहित्य में प्राप्त है। प्रायः उच्चवर्ग में ही स्वयंवर प्रचलित थे। तोसली देश में एक ऐसे विवाह स्थल का विवरण प्राप्त होता है जहाँ दास-दासियाँ एकत्र होकर आपस में एक दूसरे को पसंद कर अपना विवाह करते थे। कभी-कभी उच्च घरानों की कन्यायें सामान्य व्यक्ति अथवा घर के सेवकों से परस्पर आकर्षण के कारण विवाह कर लेती थीं। एक राजकुमारी ने इन्द्रदत्त से विवाह कर मृत्युदण्ड से उसकी रक्षा की थी। अश्वों के स्वामी एक धनिक कन्या ने अपने नौकर से विवाह कर उसे अपना घरजमाई बना लिया था। प्राकृत साहित्य में कन्याओं के जीवन के सम्बन्ध में कुछ ऐसे प्रसंग प्राप्त होते हैं जो उनकी स्वतन्त्रता और कर्त्तव्यपरायणता के द्योतक हैं। कुवलयमाला में चंडसोम की कथा का उल्लेख है कि चंडसोम की बहन श्री सोमा अपनी भाभी के रोकने पर भी गाँव में हो रहे नाटक को देखने चली जाती है। उसका बड़ा भाई चंड अत्यंत क्रोधी था फिर भी अपने प्राणों का भय न करके रात में गाँव में अकेले नाटक देखने जाना कन्या के स्वतंत्रतापूर्ण जीवन का परिचायक है। महाकवि विमलसरि ने दो ऐसी कन्याओं का वर्णन किया है जो अपने पिता के शत्रु से बदला लेने के लिए युद्ध भूमि में जा पहुँचती हैं। वीर राक्षस बज्रमुख की कन्या लंका सुंदरी अपने पिता के बंधक हनुमान से लड़ने के लिए युद्धभूमि

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