Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ ३६ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून १० समाज में अपनी कन्या, बहन को जो प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त था, वही दूसरी कन्याओं को प्रदान करने की अपेक्षा की जाती थी । अतः कन्याओं के साथ अनैतिक संबंध एवं उनके अपहरण, संस्कार युक्त समाज में बहुत कम होते थे। महाकवि विमलसूरि ने कन्याओं को प्रतिष्ठा देने के उद्देश्य से मंदोदरी द्वारा रावण को ऐसी शिक्षा देने का प्रसंग उपस्थिति किया है। वह रावण से कहती है - जैसे आप अपनी बहन के अपहरण से क्रोधित हो उठे, वैसे ही दूसरों की कन्याओं के विषय में समझें परमेसर कहो विण अप्पणिय, जिह कण्ण तेम - परभाणणिया । ११ इस युग में कन्या आदि के विवाह के संबंध में कई वर्णन प्राप्त होते हैं। उनसे ज्ञात होता है कि कंन्या का विवाह समय पर एवं अच्छे सुयोग्य वर के साथ करने की प्रत्येक पिता की अभिलाषा होती थी । पउमचरियं में वर्णित अंजना के पिता ने जब गेंद खेलती हुई अपनी पुत्री को देखा तो शीघ्र ही वर खोजकर कन्यादान करने का निर्णय कर लिया क्योंकि यदि युवावस्था में कन्यादान न किया जाये तो वे पिता पर दोष लगा सकती हैं। १२ कन्यादान के लिए वर के कुल, शील एवं कीर्ति आदि की जानकारी करना आवश्यक था। १३ – प्रायः दोनों कुलों के वैभव, संस्कार एवं शील समान होने पर ही विवाह संबंध होते थे। किन्तु कन्याएं रूप, गुण, साहस आदि से किसी युवक के प्रति आकर्षित होने पर उससे प्रेम विवाह भी करती थीं। समराइच्चकहा में द्वितीय एवं सप्तम भव की कथा में ऐसे प्रेम-प्रसंगों का वर्णन है । पउमचरियं में मंदोदरी, कल्याणमाला एवं अंजना नामक कन्याओं के प्रेम-विवाह हुए थे, परन्तु प्रत्येक की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न थीं । १५ प्रेम-विवाह में चित्रदर्शन द्वारा आकर्षण की विशेष भूमिका होती थी । कुवलयमाला में काम - गजेन्द्र और उज्जैन की राजकुमारी का विवाह चित्रदर्शन के आकर्षण से ही हुआ था। उज्जयिनी के राजा प्रजापाल ने अपनी गुणवती सुरसुन्दरी को पढ़ने के लिए एक द्विज के पास भेजा और इन्द्राणी को भी जीतने वाली दूसरी कन्या मदनसुन्दरी को भी इसी उद्देश्य से एक मुनि के पास ले जाने का आदेश दिया। सुरसुन्दरी ने इतना अध्ययन किया कि उसके सामने कोई विद्वान् ठहर नहीं पाता था। वह इतनी निष्णात हो गई जितना कोई दृढ़प्रतिज्ञ और अत्यन्त बुद्धिमान् व्यक्ति ही हो सकता है। उसने व्याकरण, छन्द और नाटक समझ लिए थे। निघण्टु, तर्कशास्त्र और लक्षण शास्त्र पढ़ लिए और अमरकोष तथा अलंकार शास्त्र भी। उसने आगम और ज्योतिष ग्रन्थ भी समझ लिये। मुख्य बहत्तर कलायें भी उसने जान लीं। उसी प्रकार चौरासी खण्ड

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