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प्राकृत साहित्य में अंकित नारी : ४१
इसी तरह महाकवि हाल की 'गाहासतसई नामक ग्रंथ में भार्या के सम्बन्ध में कहा गया है कि पत्नी अपने पति, देवर के मन को अशुद्ध जानकर भी सारे दिन घर की दीवार पर राम का अनुगमन करते हुए लक्ष्मण का चरित्र अंकित करती रही ताकि परिवार में विघटन की स्थिति न उत्पन्न हो, भाई-भाई में परस्पर संघर्ष टल जाये। इस प्रकार वह विपरीत परिस्थिति को अपने ढंग से अनुकूल करना चाहती है, यह एक भार्या की संस्कारशीलता है।३२
माता
शीलवती एवं कर्तव्यपरायणा गृहिणी सन्तान को प्राप्त करते ही माता के प्रतिष्ठित पद को सुशोभित करती थी। माता की प्रतिष्ठा और महत्त्व हर युग में रहा है, क्योंकि माता गृहस्थ जीवन की धुरी है। उसके द्वारा दिए गये संस्कार व्यक्ति को महापुरुषों की कोटि में बिठा देते हैं। महाकवि हरिभद्रसूरि के व्यक्तित्त्व के निर्माण में उनकी धर्ममाता याकिनी महत्तरा की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। पुत्र श्रद्धा से माता की वन्दना करते थे तथा अवसर आने पर माता की खुशी के लिए अपने भाग का राज्य छोड़कर मुनि बन जाते थे।
प्राकृत साहित्य के पउमचरियं में सीता ने गर्भवती होते हुए भी भ्रूणहत्या की कल्पना भी नहीं की तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हुए न सिर्फ युगल पुत्रों को जन्म दिया अपितु संतानों को उचित संस्कार देकर उन्हें कुल में सम्मिलित कर उनका उत्तराधिकार दिलाकर ही अपनी माँ होने का गौरव हासिल किया। इसी कारण सीता नारी वर्ग की समस्त निर्बलता को नष्ट करने वाली एक दायित्वबोध वाली माता है। उसमें साहसिक निर्णय-क्षमता भी है। जड़ता को विच्छिन्न कर जब नारी आन्तरिक चेतना को जगा कर अपना कर्तव्य पथ निर्धारित कर लेती है तो वह अजेय हो जाती है। पउमचरियं में नारी चेतना को अलंकृत करने वाली महत्त्वपूर्ण चरित्र सती अंजना का भी है जिसने अपने को दुराचारिणी घोषित होने पर, श्वसुर-गृह तथा पितृ-गृह से निष्कासित होने पर भी सम्पूर्ण जगत् को वह पुत्ररत्न दिया जिसके द्वारा सदा-सदा के लिए इस संसार से राक्षसत्व मिटाकर 'रामत्व' की प्रतिष्ठापना हुई है।
राम ने रावण विजय के बाद जब अपनी माता के पुत्र-वियोग का दुःख सुना तो वे द्रवित हो उठे। उन्हें माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी प्रिय लगने लगी। ऐसी माताओं को देखकर ही कहा गया है कि माता का स्थान पिता से भी ऊँचा है क्योंकि माता प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी संतान की सेवा के लिए तत्पर रहती है। उद्योतन सूरि ने माता-पुत्र के स्नेह को अपने वर्णन