Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 49
________________ ४० : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून १० वाली, बड़ों के निर्देश को व्यर्थ समझने वाली अन्य बहुयें घर के अन्य कामों नियुक्त होती हैं। गुण और बुद्धि के साथ यहाँ श्रम से युक्त नारी की प्रतिष्ठा की गई है। २८ दशवैकालिक हारिभद्रीयवृत्ति में सुभद्रा की कथा शील के महत्त्व को प्रस्तुत करने वाली है। " शीलवती नारियों की हर युग में प्रतिष्ठा रही है। समराइच्चकहा में ऐसी सच्चरित्रा पत्नियों को 'सुदाहारत तुल्या, विशुद्धशीला, धर्मकल्पवृक्ष आदि सम्मान-सूचक विशेषण दिये गये हैं । " उस समय की एक नारी पात्र कुसुमावती पतिव्रता और गृहसंचालिका पत्नी के रूप में उपस्थित हुई है। जब उसे यह आशंका होती है कि अपशकुन - दोहद से उत्पन्न उसका पुत्र कहीं अपने पिता के लिए दुःखदायी न हो तो कुसुमावती ऐसे पुत्र को त्याग देती है । क्योंकि उसे भरोसा था कि पति के मन पर तो वह ही अधिकार रखती है। उसने पति से वचन ले लिया था कि वह जो कुछ भी इस लोक में देखता, सुनता, अनुभव करता है वह सब कुछ आकर उसे बताना होगा । हरिभद्रसूरि ने एक मनोरंजक कथा द्वारा यह संकेत किया है कि उस समय किस प्रकार नारी पुरुषों पर शासन चलाने को सोचने लगी थी। एक ब्राह्मणी ने अपनी तीन कन्याओं को विवाह के समय यह शिक्षा दी कि यदि तुम अपने पतियों को अपने वश में रखना चाहती हो तो प्रथम मिलन में पाद- प्रहार से उसका स्वागत करना। बड़ी कन्या ने जब पाद- प्रहार किया तो उसका पति उसके पैर को सहलाते हुए बोला कि तुम्हें चोट तो नहीं लगी? यह सुनकर माँ ने बेटी को कहा तेरा पति जीवन भर तेरा गुलाम बनके रहेगा। मँझली कन्या के पति ने लात खाकर उसे तुरंत भला बुरा कहा किंतु फिर शांत हो गया, तब माँ ने बेटी से कहा- तुम कभी-कभी रूठती रहना तो आराम से रहोगी। छोटी कन्या ने जब पाद- प्रहार का साहस दिखाया तो उसके पति ने उसे खूब पीटा और उसकी माँ को भी अपशब्द कहे। पता चलने पर माँ ने बेटी को अकेले में समझाया कि-पुत्री तुम्हें सबसे श्रेष्ठ पति मिला है, तुम इसकी आज्ञा में रहोगी तो सुखी रहोगी। आठवीं शताब्दी में प्राकृत कथा साहित्य में नारियों की स्वच्छंदता के कई उदाहरण प्राप्त होते हैं परन्तु ऐसी चरित्र वाली कर्त्तव्यहीन नारियाँ समाज में सम्मान की पात्र नहीं थीं। उद्योतनसूरि द्वारा मोहदत्त की कथा में स्पष्ट किया गया है कि अनैतिक संबंध का पता चलते ही परिवार और समाज के व्यक्ति दोषी को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हो जाते थे। सुवर्णा नामक वणिक पुत्री परित्यक्ता के रूप में अपने माँ-बाप के यहाँ रहती थी । किन्तु राजकुमार तोसल के साथ उसका अनैतिक संबंध हो जाने पर उसे घर छोड़ना पड़ा, और राजकुमार के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था की गई। ३२

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