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३८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१०
में उनका सामना करती है। इसी प्रकार कल्याणमाला के पिता को कोई म्लेच्छ बंदी बनाकर ले गया तब शोक मनाने के स्थान पर कल्याणमाला स्वयं नलकुंवर के पुरुष वेष में राजा बन गई। उसने पुरुष वेष तब तक नहीं त्यागा जब तक उसे पिता की मुक्ति का आश्वासन नहीं मिल गया। इससे यह भी ध्वनित होता है कि पुत्र ही नहीं अपितु पुत्रियाँ भी पिता के प्रति पुत्रवत् ही अपने कर्तव्यों का पालन करती थीं।
भार्या
सुशिक्षित संस्कारयुक्त एवं साहसी कन्यायें जब मनपसन्द वर के साथ विवाह-सम्बन्ध में बंधती हैं तो वे भार्या, गृह-लक्ष्मी आदि पदों को धारण करती हैं। प्राकृत साहित्य में पत्नी की भूमिका गृहस्थ जीवन में सहचरी के रूप में रही है। वह अपने पति की मित्र, सलाहकार एवं संरक्षिका के रूप में प्रतिष्ठित थी। प्राचीन साहित्य में पत्नियों के आदर्श रूपों की प्रमुखता है, किन्तु अधम भार्याओं के विवरण भी कम नहीं हैं। अत: यह साहित्य तत्कालीन समाज में नारी के यथार्थ रूप को प्रस्तुत करने में संकोच नहीं करता। इन ग्रन्थों में वर्णित ग्रहिणी के रूप केवल पौराणिक या काल्पनिक ही नहीं हैं अपितु उनका जनजीवन से सीधा सम्बन्ध है। पतियों के साथ मन-वचन-काय से रहना सभी नारियों का कर्तव्य था। उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला में पति से प्रेम करने वाली पत्नियों के कई सुन्दर दृष्टान्त प्रस्तुत किये हैं। ____ आदिपुराण से ज्ञात होता है कि इस युग में विवाहित नारी का महत्त्व क्रमशः बढ़ रहा था। वह घूमने-फिरने एवं धार्मिक उत्सवों में आने-जाने के लिए स्वतन्त्र थी। गुणवती भार्या को पाकर पति अपने को कृतार्थ मानते थे। पत्नी से पति की शोभा होती थी।२२ अतः पत्नियों का अपमान करना शिष्ट व्यक्तियों के लिये अपराध जैसा था। सद्गुणी एवं बुद्धिमती नारी पुरुष पर अधिकार जमाने में, उसे अपने वश में करने में सफल रही है। हरिभद्रसूरि के धूर्ताख्यान नामक ग्रन्थ में खण्डपाना नाम की नारी पाँच सौ पुरुषों पर विजय प्राप्त करती है, उन्हें वादविवाद में हराती है तथा अन्त में उन्हें भोजन कराकर तृप्त करती है। यह भी नारी की विजय का घोषणापत्र है आठवीं शताब्दी का। कवि ने इस आख्यान के द्वारा नारी के स्वतन्त्र व्यक्तित्व के विकसित होने की सूचना दी है।२३
स्त्रियाँ पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग किया करती थीं। विमलसूरि रचित पउमचरियं में कैकेयी को प्रत्युत्पन्नमति, कला-सम्पन्न, दूरदर्शी महिला के रूप में दर्शाया गया है। सहृदया, कला-मर्मज्ञा कैकेयी युद्धकला में निपुण थी। रथ