Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 48
________________ प्राकृत साहित्य में अंकित नारी : ३९ कला में भी निष्णात थी। कितनी शूरता और वीरता उनमें रही होगी कहा नहीं जा सकता। प्राचीन काल के युद्ध आमने-सामने लड़े जाते थे। ऐसे रणस्थल पर रथ-चक्र की कीली निकल जाने पर अपनी अंगुली रथचक्र में डालकर चलाये रखना, अपूर्व साहस की अपेक्षा रखता है। वह आधुनिक प्रगतिशील महिला थी, समय से आगे चलने वाली । आचार्य विमलसूरि ने रावण की पट्टरानी की भी भव्यता सिद्ध करने की पूर्ण चेष्टा की है। स्वतः उसके अनेक विशेषण दिए हैं, तथा पात्रों से भी उसकी प्रशंसा कराई है और उसके कार्यों से भी उसे उदार एवं उदात्त महिला सिद्ध करने की सफल चेष्टा की है। वह वनितोत्तमा है। सरस्वती की प्रतिमूर्ति जैसी लगती है और उसको प्राप्त कर रावण को लगता है मानो उसने समस्त भुवनाश्रित श्री ही पा ली है। वह पति की हितैषिणी है और शान्त मस्तिष्क की विचारवती स्त्री है। चन्द्रनखा के खरदूषण द्वारा हरण कर लिए जाने पर रावण खड्ग लेकर लड़ने जाना चाहता है किन्तु मन्दोदरी उसे समझाती है "हे नाथ! कन्या निश्चित ही पराया धन होती है, उसे पिता का घर त्यागना ही होता है। खरदूषण जो आपकी बहन को ले गया है वह योग्य है, पारंगत है। यदि वह युद्ध में मारा गया तो अपहरण के दोष से दूषित कन्या का दूसरा कोई वरण नहीं करेगा अतः उसे विधवा ही रहना पड़ेगा"। आज के भौतिकवादी और विवाह संस्था के प्रति आदर न रखने वाली उन्मुक्त आचरण के पथ पर बढ़ने वाली कन्याओं और माताओं के लिए मन्दोदरी के वचन प्रेरक हैं। अपने उन्मुक्त आचरण से आज नारी क्रूरताओं और अमानवीयता की शिकार बन रही हैं। अपनी पतन को अलविदा कहने का जौहर दिखाने का तथा चरित्र अपने अंदर स्वयं नारी को उत्पन्न करना होगा। रावण की प्रकृति में जहाँ उत्तेजना थी वहीं मन्दोदरी की प्रकृति शांत थी, वह अपनी दूरदर्शिता एवं विवेकशीलता से समय-समय पर हितकारी उपदेश देती है। वह आत्मदीप्त दाह से रावण को धिक्कारती भी है- हे महाशय! अल्प सुखकर और बहुत दुःखदायी इन विषय सुखों का परित्याग करो और परनारी के संसर्ग को छोड़ दो। जब तुम्हें हजारों रानियों से तृप्ति नहीं हो सकी तो एक से कैसे होगी। पति को सुपथ पर लाना ही पत्नी का उद्देश्य है न कि उसके अनैतिक कार्यों में सहयोग देना। आचार्य हरिभद्रसूरि ने प्राचीन आगमों की प्रसिद्ध कथा 'धन्य की चार पुत्रवधुयें प्रस्तुत की है। इसमें श्वसुर धन्य श्रेष्ठि द्वारा प्रदत्त कुलपरम्परा रूपी धान्य को अपने बुद्धि और श्रम से कई गुना कर देने वाली छोटी बहू घर की स्वामिनी बनती है। जबकि स्वाद में रुचि रखने वाली, संग्रह करने

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