Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 44
________________ प्राकृत साहित्य में अंकित नारी : ३५ था। बारहवें दिन उसका नामकरण संस्कार किया गया एवं उसके लालन-पालन की व्यवस्था की गई। समराइच्चकहा से ज्ञात होता है कि विलासवती के जन्म होने पर उसके माता-पिता ने उसके लालन-पालन के लिए धाय नियुक्त की थी। कन्या को स्नेहवश बचपन में अनेक अलंकारों से अलंकृत किया जाता था। पिता के घर पुत्री का लालन-पालन बड़े स्नेह से होता था। कन्याओं को शिक्षित करना इस युग में आवश्यक माना जाता था। हरिभद्र ने विवरण दिया कि पुत्री रत्नवती की शिक्षा के लिये उसके माता-पिता ने सभी साधन जुटाये थे और अपनी पुत्री को संगीत, चित्रकला एवं कई विज्ञानों में निष्णात किया था। कुसुमावली को बचपन से ही काव्य एवं चित्रकला की शिक्षा प्रदान की गयी थी। शिक्षा पर इतना अधिक बल देने के कारण कुछ कन्यायें इतनी अधिक विदुषी हो जाती थीं कि वे अध्यापन कार्य भी निपुणता से करती थीं। कुवलयमाला की एक कथा में भरुकच्छ की कन्या मदनमंजरी ने अपने पिता की आज्ञा से एक राजगीर को थोड़े ही समय में अक्षरज्ञान, लिपिज्ञान, वास्तु-लक्षण, नृत्यज्ञान, सभी दर्शन, आदि की शिक्षा देकर पंडित बना दिया था। कन्या मदनमंजरी के द्वारा पढ़ाया गया वह राजगीर भी अध्यापन कला में इतना निपुण हो गया कि उसने जंगल में पलने वाली एक कन्या को वहीं वन के वातावरण में इतने सुंदर ढंग से शिक्षा प्रदान की कि वह बाद में महाविदुषी संन्यासिनी ऐणिका बनी। शिक्षा को ग्रहण करने वाली आगे चलकर कुशल गृहिणी बनती है। उनके गुणों के विकास में शिक्षा की विशेष भूमिका रहती है। किन्तु अशिक्षित और संस्कारों से रहित कन्यायें कुमार्ग पर जल्दी अग्रसर हो जाती हैं। समराइच्चकहा में पुन्दरभट्ट की पत्नी नर्मदा और जिनधर्म की पत्नी बन्धुलता अशिष्ट आचरण करने वाली नारियाँ थीं। जिन्होंने बचपन में कोई संस्कार प्राप्त नहीं किये थे। एक धूर्त ने एक जुलाहे की लड़की को आकर्षित कर उसको अपने साथ भागने के लिए तैयार कर लिया। जुलाहे की लड़की ने जब अपनी सहेली राजकुमारी को साथ भाग जाने की सलाह दी तो राजकुमारी को किसी नीतिपूर्ण गाथा ने स्मरण दिलाया कि- हे आम! यदि किसी माह में कनेर के वृक्ष पर अधिक फूल आये तो तुझे उस समय फूलना उचित नहीं क्योंकि नीच लोगों के अशोभन कार्य का अनुकरण नहीं किया जाता। इस शिक्षा से राजकुमारी उस धूर्त से बचकर राज-महल में वापस लौट गई। जइ कुल्ला कणियारया चुयय! अहिमासयंमि पुट्ठमि। तुह न खयं फुल्लेउं जइ पच्चंता करिति डमराई ।।

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