Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 32
________________ जैनागमों में शिक्षा का स्वरूप : २३ पर आधारित शिक्षा का प्रबन्ध अपनी अधीनस्थ संस्थाओं में करना चाहिए।' सन् १९७५ में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) ने अपने प्रतिवेदन में कहा - 'विद्यालय पाठ्यक्रम की संरचना इस ढंग से की जाए कि चरित्र निर्माण शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बने ।' वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है कि इसमें भारत के शाश्वत राष्ट्रीय जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा दर्शन पर सम्यक् विचार तथा उनका अनुपालन नहीं हुआ। अंग्रेजों द्वारा स्थापित शिक्षा व्यवस्था आज भी उसी प्रकार से प्रचलित है। उसके परिणाम स्वरूप आज का विद्यार्थी दिशा - विहीन तथा बिना पतवार की नौका के समान भटकता दिखाई दे रहा है। शिक्षा क्षेत्र में चारों ओर अराजकता फैल गई है। अनुशासनहीनता व्यापक रूप में फैल गई है और उसका घातक प्रभाव हमारे सम्पूर्ण राजनैतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में भी है। महान् चिन्तक डॉ० नेमीचन्द जैन ने ठीक ही कहा है कि 'आज देश के पास सब कुछ है, सिर्फ एक निष्कलंक, निष्काम और देशभक्त चरित्र नहीं है।'' इस भयावह परिस्थिति का सबसे बड़ा कारण है- हमारी दिशा- विहीन शिक्षा नीति। अतः आवश्यकता है कि भारतीय जीवन मूल्यों को हमारी शिक्षा-प्रणाली अन्तर्भूत किया जाये । भारतीय अध्यात्म एवं पश्चिमी विज्ञान का समन्वय अवश्य ही हमारे शिक्षा क्षेत्र में क्रान्ति लायेगा तथा उसका अनुकूल प्रभाव हमारे सारे राष्ट्रीय जीवन पर पड़ेगा। हमारे संविधान में 'धर्म निरपेक्षता' को हमारी नीति का एक अंग माना गया है। 'धर्म निरपेक्षता' शब्द ही भ्रामक है क्योंकि भारतीय परम्परा के अनुसार हम 'धर्म' से निरपेक्ष नहीं रह सकते। धर्म निरपेक्षता का अर्थ मात्र इतना ही हो कि राज्य किसी विशेष धर्म का प्रचार नहीं करे, तब तक तो ठीक है, लेकिन इसका अर्थ धर्म से विमुख हो जाना कदापि नहीं है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही तीन धर्मों की धाराएँ मुख्य रूप से बहती रही हैं- वैदिक धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म। बाद में सिक्ख धर्म का भी प्रारम्भ हुआ। इन चारों धाराओं ने कुछ ऐसे नैतिक व आध्यात्मिक मूल्य स्थापित किए, जिन्हें सनातन जीवन-मूल्य कह सकते हैं और वे प्रत्येक मानव पर लागू होते हैं। उनका हमारी शिक्षा प्रणाली में विनियोजित होना अत्यावश्यक है। जैनागमों में शिक्षा जैनागमों में शिक्षा एवं ज्ञान के बारे में विस्तृत चर्चाएँ मिलती हैं । वहाँ पर आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों प्रकार की शिक्षाओं का विवेचन एवं दिशानिर्देश मिलता है। हमें अध्यात्म-विद्या एवं आजीविका की विद्या दोनों की आवश्यकता है। आगम में शिक्षा अथवा ज्ञान प्राप्ति के तीन उद्देश्य बताए गए हैं

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