Book Title: Sramana 2010 04
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 26
________________ जैन साहित्य में वर्णित वास्तु कला : एक समीक्षात्मक अध्ययन : १७ बम्भइणी वाहिकरी ऊसरभूमीइ इवइ रोरकरी । अइफुट्टा मिच्चुकरी दुक्खकरी तह अ ससल्ला । ३३ अर्थात् जिस भूमि में बीज बोने से तीन दिन में अंकुर निकल जाये ऐसी समचौरस, दीमक रहित, बिना फटी हुई, शल्य रहित तथा पूर्व, ईशान और उत्तर दिशा की तरफ नीची भूमि मकान बनाने के लिए प्रशस्त (शुभ) है, दीमक वाली भूमि व्याधिकारक है, ऊसर भूमि उपद्रवकारक है, अधिक फटी हुई मृत्युकारक और शल्यवाली दुःखकारक है। भूमि में शल्य (हड्डी का टुकड़ा) रहना हानिकारक है। इसी ग्रन्थ में शल्य के दुष्परिणाम भी बताये गये हैं। मनुष्य की हड्डी का शल्य रह जाये तो मकान मालिक की मृत्यु हो, गधे की हड्डी का शल्य रह जाये तो राजदंड भोगना पड़े, कुत्ते का शल्य रह जाये तो बालक जीये नहीं, बालक का शल्य रह जाये तो उस मकान में मालिक का निवास न हो, गौ का शल्य रह जाये तो धन का विनाश होता है। अर्थात् भवन हेतु चुनी गयी भूमि में पानी आ जाये अथवा पाषाण आ जाये अथवा एक पुरुषप्रमाण भूमि को खोद करके कोई शल्य हो तो निकाल देना चाहिए, उसके बाद ही भूमि पर गृह बनाना चाहिए। आधुनिक विद्वानों एवं जैन साधु-साध्वियों द्वारा वास्तु के समस्त ग्रन्थों का अध्ययन करने के बाद सार रूप में विस्तार से वर्णन किया गया है। आर्यिका विशुद्धिमति ने अपने वत्थुविज्जा में बताया है कि शल्ययुक्त भूमि में निवास से ग्राम उजड़ना, समाज में कत्ल होना, धार्मिक भावनाएं हीन होना, राज-भय, रोगोत्पत्ति, अग्निभय, परदेशगमन, मित्रनाश, सन्तान-हानि, क्लेश, पशुहानि, अकालमरण, खोटे स्वप्न, पागलपन आदि से शल्य की सूचना मिलती है। ३५ ऐसे शल्य युक्त भूमि के उल्लेख अन्य ग्रन्थों में भी मिलते हैं। भूमि के अधिष्ठात्री देव या मालिक की पूजा-पाठ करके या उसे सन्तुष्ठ करके ही भवन कार्य प्रारम्भ करना चाहिए । ६ यतिवृषभाचार्य की तिलोयपण्णत्ति में नींव के खनन के समय क्या-क्या करना चाहिए इसका विस्तार से वर्णन मिलता है तथा साथ में पंचामृत का सिंचन आवश्यक कहा गया है। देवालय, जलाशय और गृह बनाते समय दिशा का विचार करना आवश्यक है। ३७ मकान बनाते समय रसोई, स्नानघर, मुख्यद्वार, जल संरक्षण स्थल, नल, पानी की आवक, पानी की निकासी (नाली) चौकीदार का आवास, पूजाघर, अध्ययन कक्ष, पशुशाला, खिड़कियाँ, दरवाजे आदि कहाँ किस दिशा में रखना चाहिए आदि का विस्तार से वर्णन मिलता है तथा ऐसा नहीं करने पर दुष्परिणाम भी बताये गये हैं । वास्तुशास्त्र के ३० महत्त्वपूर्ण ३६

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