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: श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३
के अनुसार वह एक कोस सहित एक योजन का अवग्रह करके रह सकती थी अर्थात २- कोस जाना और २= कोस लौटना इस प्रकार ५ कोस जाने का नियम था। बौद्ध भिक्षुणियों के आहार सम्बन्धी नियम -
यदि हम बौद्ध भिक्षणियों के आहार सम्बन्धी नियमों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि जैन धर्म की तरह बौद्ध धर्म में भी भिक्षु-भिक्षणियों के भोजन सम्बन्धी नियमों में कोई अधिक असमानता नहीं है।
बौद्ध भिक्षुणियों को भिक्षुओं के समान आचरण करने का निर्देश स्वयं भगवान् बुद्ध ने दिया था।१८ बौद्ध भिक्षुणियों को आहार सम्बन्धी नियमों का पालन करना पड़ता था।
बौद्ध भिक्षुणियों का भोजन सादा तथा सात्विक होता था। भोजन में लहसुन तथा प्याज का प्रयोग निषिद्ध था।१९
बौद्ध धर्म में भिक्षुणी को दुर्भिक्ष आदि के अवसर पर भी मनुष्य, कुत्ते, सिंह, बाघ, चिते आदि का मांस खाना निषिद्ध ठहराया गया है। मांस खाने वाला घुल्लच्चाय का गम्भीर दोषी माना जाता था। इसी प्रकार सुरापान करना सर्वथा वर्जित था।२१ बौद्ध भिक्षुणियों को मध्याह्न के बाद भोजन करना निषिद्ध था ऐसा करने पर उन्हे पाचित्तिय के दण्ड का भागी बनना पड़ता था।२२ भोजन करने के सम्बन्ध में बौद्ध भिक्षुणियों को यह निर्देश था कि पिंड ग्रास को सावधानी पूर्वक मुँह में डालें।
भोजन का ग्रास न तो अधिक बड़ा होना चाहिए और न अधिक छोटा उसका आकार गोल होना चाहिए।२३ गृहस्थ द्वारा प्रदत्त भोजन सुस्वादु हो अथवा स्वाद रहित, भिक्षा का सम्मान करते हुए उसे ग्रहण करने का निर्देश दिया गया था। भिक्षा कैसी भी हो वह उसे लेने से अस्वीकार नहीं कर सकती थी।२४ भिक्षा ग्रहण करते समय उसे अपने पात्र की तरफ ही देखने को कहा गया था तथा साथ ही यह भी निर्देश दिया गया था कि ग्रहण किया गया पदार्थ ऊपर उठा हुआ न हो बल्कि पात्र के अन्दर हो।२५ ग्रहण किया गया पदार्थ आवश्यकता से अधिक प्राप्त होने पर आपस में भिक्षुणियों को बांट कर खाना चाहिये।
जैन और बौद्ध दोनों संघों के आहार सम्बन्धी नियम देखने पर ज्ञात होता है कि दोनों ही संघों में भिक्षुणियों का भोजन सादा एवं सात्विक होता था। भोजन की शुद्धता का पर्याप्त ध्यान रखा जाता था। दोनों ही संघों में रात्रि भोजन वर्जित था। रात्रि में सूक्ष्म जीवों की हिंसा का डर रहता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि दोनों संघों
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